DEIEd Hindi Viram chinha Study Material Notes Previous Question Answer
विराम चिन्ह का ज्ञान
अल्पविराम, अर्धविराम, पूर्णविराम, प्रश्नवाचक, विस्मयबोधक,
अवतरण चिन्ह, विराम चिन्ह का ज्ञान और उनका प्रयोग
विराम चिन्ह का ज्ञान
‘विराम’ का अर्थ है ‘रुकना’ या ‘ठहरना’। लिखित भाषा में भावों की अभिव्यक्ति एवं अर्थ की सुस्पष्टता के लिए विराम चिह्नों का प्रयोग किया जाता है। बोलने की भाषा में वक्ता अंग संचालन, कंठ ध्वनि एवं अन्य हावभावों से अपनी अभिव्यक्ति को पूर्णता प्रदान करता है, परन्तु लिखित भाषा में यह कार्य विराम चिह्नों से लिया जाता है।
प्रत्येक भाषा के लिए विराम चिह्नों की महती उपयोगिता है। इनके अभाव में भाषा अपूर्ण है, क्योंकि विराम चिह्नों के समुचित प्रयोग द्वारा ही लेखक का मंतव्य पाठक पर पूर्णत: व्यक्त हो पाता है। वस्तुतः विराम चिह्न लिपि के आवश्यक अंग हैं। जिस प्रकार हम ध्वनियों को लिपि चिह्नों से व्यक्त करते हैं, उसी प्रकार भाषा में कथन-पद्धति का स्पष्टीकरण विराम चिह्नों से किया जाता है।
विराम-चिह्नों की एकमात्र उपयोगिता है—वक्ता या लेखक के कथन को पूर्णतः स्पष्ट करना। विराम चिह्नों का अभाव होने से एक ओर तो अर्थ में अस्पष्टता आने की सम्भावना रहती है, तो दूसरी ओर अभिव्यक्ति में अपूर्णता का समावेश हो जाता है। एक उदाहरण से हम अपने कथन को स्पष्ट करेंगे-
चौराहे पर खड़े यातायात-नियन्त्रक (सिपाही) को अपने अधिकारी का यह लिखित सन्देश मिला
“कार नं, UP 38 AB 4456 को रोको मत जाने दो।”
वस्तुतः यह सन्देश विराम चिह्नों के अभाव में अस्पष्ट है। इस सन्देश से सिपाही यह नहीं समझ पाया कि कार को रोकना है या कि उसे जाने देना है; क्योंकि इस वाक्य के दो अर्थ हो सकते हैं। यथा
- रोको, मत जाने दो। (कार को रोको, (उसे) जाने मत दो) 2. रोको मत, जाने दो। (कार को रोको नहीं (उसे) जाने दो) | हिन्दी में विराम चिह्नों का प्रयोग आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी के सद्प्रयत्नों का परिणाम है। उन्होंने विराम चिह्नों की उपयोगिता प्रतिपादित करते हुए हिन्दी में इनके प्रयोग को अपरिहार्य बताया और अंग्रेजी में प्रचलित प्रायः सभी चिह्नों को ग्रहण कर लिया।
हिन्दी में प्रयुक्त विराम चिह्न
हिन्दी में प्रयुक्त होने वाले प्रमुख विराम चिह्न निम्नवत् हैं-
अल्पविराम , (Comma)
अर्द्धर्विराम ; (Semicolon)
पूविराम । (Full stop)
प्रश्नवाचक चिहा ? (Sign of Interrogation)
5, विस्मयादिबोधक ! (Sign of Exclamation)
योजक चिहा – (Hyphen)
निर्देश चिह्न _ (Dash)
विवरण चिह् :- (Colon and Dash)
उद्धरण चिह्न ‘’ “ ” (Inverted Commas)
कोष्ठक चिह () {}] (Brackets)
संक्षेप चिह्न o (Dot)
लोप सूचक XXX (Cross)
हंस पद चिह्न ^ ()
पुनरुक्ति सूचक चिह्न ” ” ” (As on)
अल्पविराम (,)
अल्पविराम का शाब्दिक अर्थ है ‘थोड़ा ठहरना’।
हिन्दी वाक्यों में इसका प्रयोग सभी विराम चिह्नों की अपेक्षा अधिक होता है, अतः यह सर्वाधि कि महत्वपूर्ण चिह्न है। अल्पविराम के प्रयोग में पर्याप्त सावधानी की अपेक्षा रहती है, क्योंकि इसके गलत प्रयोग से अर्थ का अनर्थ होने की सम्भावना रहती है। भाषा में अर्थगत स्पष्टता लाने के लिये भी अल्पविराम की महती आवश्यकता रहती है। इस चिह्न का प्रयोग निम्नलिखित स्थितियों में किया जाना चाहिए
1. यदि किसी वाक्य में दो या अधिक समान पद एक साथ होते हैं, तो उनके बीच अल्पविराम प्रयोग होता है। यथा
(i) राधा, सीता, गीता, माधुरी और लतिका साथ-साथ रहती हैं। (i) वह कहानी, कविता, नाटक और एकांकी में बराबर रुचि रखता है।
2. संयुक्त वाक्यों में दूसरे वाक्य को प्रारम्भ संयोजकों से होता है। समुच्चय बोधक संयोजको के अतिरिक्त अन्य संयोजकों—अतः, परन्तु, अतएव आदि से पूर्व अल्पविराम का प्रयोग होता है। यथा
(i) वह गरीब जरूर है, पर बेईमान नहीं।
(ii) उसने परिश्रम नहीं किया, अतः अनुत्तीर्ण हो गया।
3. यदि किसी वाक्य का प्रारम्भ हाँ, नहीं, अच्छा आदि अव्ययों से हुआ हो तो इनके बाद | अल्पविराम का प्रयोग होता है। यथा
(i) हाँ, मैं कल जाऊँगा।
(ii) नहीं, वह मेरे साथ नहीं आएगा।
(iii) अच्छा , अब चलता हूँ।
4. हिन्दी वाक्य रचना कहीं-कहीं अंग्रेजी वाक्य रचना से प्रभावित है। कभी-कभी मुख्य वाक्य के बीच में विशेषण या क्रिया विशेषण उपवाक्य होते हैं इनमें दोनों ओर त होता है। यथा
(i) विभीषण, जो लंका के राजा रावण का भाई था, राम की शरण में आ गया।
(ii) आने वाले समय में, जब भारत प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में अग्रणी होगा, विश्व में भारत की
तूती बोलेगी।
5. किसी उक्ति या उद्धरण से पूर्व भी अल्पविराम का प्रयोग किया जाता है। यथा—
(i) गांधी ने कहा, “हमारा आंदोलन अहिंसक रहेगा।”
(ii) तिलक ने कहा, “स्वतंत्रता हमारा जन्मसिद्ध अधिकार है।”
अर्द्धविराम (;)
अर्द्धविराम में अल्पविराम की तुलना में कुछ अधिक ठहरना होता है, परन्तु पूर्णविराम को तुलना में कम। इसका प्रयोग हिन्दी वाक्यों में निम्न स्थितियों में किया जाता है। यथा—
1. यदि किसी वाक्य में अनेक उपवाक्य स्वतन्त्र रूप से प्रयुक्त हुए हों, तो प्रत्येक उपवाक्य के बाद अर्द्धविराम का प्रयोग होता है। यथा
बाढ़ के कारण फसलें नष्ट हो गई हैं; मार्ग अवरुद्ध हो गए हैं; सड़कें टूट गई हैं; महामारी फैलने लगी है और जन-धन की भारी हानि हुई है।
2. सभी उपाधियों के लेखन में दो उपाधियों के बीच अर्द्धविराम का प्रयोग किया जाता है। यथा–
(i) एम.ए.; पी-एच.डी.
(ii) बी.ए.; बी.एड.
3. एक वाक्यांश को दूसरे से पृथक् दिखाने के लिए अल्पविराम का प्रयोग होता है। यथामेले में हमारी जेब कट गई; हमें पता तक न चला।
पूर्णविराम (1)
पूर्ण विराम का अर्थ है-‘पूरी तरह रुकना’। जब कोई कथन अर्थ की दृष्टि से पूर्ण हो जाता है तब पूर्ण विराम का प्रयोग किया जाता है।
प्रायः इसका प्रयोग प्रत्येक वाक्य के अन्त में किया जाता है, क्योंकि वक्ता के कथन की दृष्टि से एक वाक्य अपने अर्थ को प्रकट करता है। मूलतः किसी परिवार की समाप्ति पर इसका प्रयोग होता है। यथा
(i) सोहन पढ़ने गया। (ii) तुम मेरे घर आये।
कभी-कभी व्यक्ति या वस्तु का सजीव चित्र प्रस्तुत करते समय जिस शैली का प्रयोग किया जाता है, उसमें वाक्यांश ही होते हैं, फिर भी उन वाक्यांशों के बाद इस चिह्न का प्रयोग किया जाता है। यथा—
- गौर मुख-मण्डल पर हरिण-सी आँखें। सावनी घटाओं जैसी बिखरी अलकावलि। गठा हुआ बदन।
- दूर-दूर तक उमड़ती-घुमड़ती कजरारी घटाएँ। रह-रहकर बिजली का चमकना । पुरवैया
बयार। सावनी मल्हार और गीतों की मधुर ध्वनि।
किन्तु निम्नलिखित वाक्यों में इस चिह्न का प्रयोग अशुद्ध और दोषपूर्ण है
- जब वह मेरे घर आया। तभी मैंने उससे बातें कीं।
- तुम कहते हो। कि वह आज नहीं जाएगा। यहाँ ‘तभी’ तथा ‘कि’ के पहले पूर्ण विराम का प्रयोग ठीक नहीं।
दोहा, चौपाई, कवित्त, सवैया आदि छन्दों में एक पंक्ति के बाद पूर्ण विराम (1) तथा द्वितीय पक्ति के पश्चात दोहरा पूर्ण विराम (।) लगाया जाता है –
रघुकुल रीति सदा चलि आई।
प्रान जाहिं पर वचन न जाई ।।
कबिरा आप उगाइये, और न ठगिये कोइ ।
आप में सुख होत है, और ठगे दु:ख होई ।।
पूर्ण विराम के प्रयोग में विशेष सावधानी की जरूरत होती है। यह देखा गया है कि लोग । अथवा ‘था’ के तुरन्त बाद पूर्ण विराम का अनावश्यक प्रयोग बिना यह विचार किये हुए कर कि वाक्य पूर्ण हुआ है या नहीं। इस प्रवृत्ति पर रोक लगाने का अभ्यास बना लेना चाहिए। विराम का प्रयोग तभी उचित माना जाता है जब वाक्य में अर्थगत पूर्णता आ गयी हो।
इसी प्रकार ‘और’ से पहले कभी पूर्णविराम का प्रयोग नहीं होता। संयोजकों से पूर्व पूर्णविराम का प्रयोग नहीं करना चाहिए।
प्रश्नवाचक चिह्न (?)
इसका प्रयोग वाक्य के अन्त में होता है। जिन वाक्यों में प्रश्न करने या पूछे जाने का भाव रह है अथवा जहाँ वाक्य में अनिश्चितता रहती है अथवा व्यंग्योक्ति होती है, वहाँ इसका प्रयोग किया जाता है। वे वाक्य जिनमें कोई प्रश्न पूछा गया हो और जिसके उत्तर की अपेक्षा की गयी है। प्रश्नवाचक वाक्य कहलाते हैं। यह आवश्यक नहीं है कि ऐसे वाक्यों में प्रश्नसूचक शब्द का प्रयोग हुआ हो। यथा
- तुम्हारे भाई कहाँ रहते हैं?
- आप वहाँ गये थे?
- बैंक से रुपये ले आये?
- हमारे घर कौन आया है?
- क्या वह पढ़ रहा है।
- शायद आपकी ही शादी हुई है?
- आप ही बनारस के रहने वाले हैं?
- आज देश में नेता ही तो ईमानदार हैं?
विशेष—जहाँ प्रश्न सीधा पूछा गया हो और उत्तर की अपेक्षा न हो, वहाँ प्रश्नसूचक चिह्न नहीं लगता है। यथा
- मैंने समझ लिया कि देर से क्यों आये थे।
- सब जानते हैं कि तुम कहाँ थे।
विस्मयादिबोधक चिह्न (!)
जहाँ हर्ष, विषाद, विस्मय, घृणा, करुणा, भय आदि का भाव हो, वहाँ इसका प्रयोग होता है। यथा—-
(अ) अरे! तुम तो तड़के ही आ गये। (विस्मय)
(ब) आह! वह संसार से उठ गया। (विषाद)
(स) छिः छिः! शहरी जीवन तो नरक है। (घणा)
(द) आहा ! बड़ा आनन्द आया। (हर्ष)
(य) वाह! खूब खेल जमा। (हर्ष)
इनके अतिरिक्त प्रार्थना, व्यंग्य, उपहास आदि के भाव को व्यक्त करने के लिए भी इसका प्रयोग किया जाता है। यथा
(अ) हे भगवान् ! सबका कल्याण करो।
(ब) तुम तो पूरे गधे हो।
(स) अरे दुष्ट! अन्याय मत करो। विस्मयादिबोधक चिह्न का प्रयोग भावसूचक शब्द के बाद करना चाहिए।
योजक चिह्न (-)
योजक चिह्न का प्रयोग निम्न स्थितियों में किया जाता है
(i) सामासिक पदों में
माता-पिता, चरण-कमल, धन-दौलत, भाई-बहिन, मार्ग-व्यय, रात-दिन।
(ii)विपरीतार्थक शब्दों में
हानि-लाभ, यश-अपयश, आदि-अन्त।
(iii) पुनरुक्ति में
बार-बार, जब-जब, जहाँ-जहाँ।
(iv) अनिश्चित संख्यावाचक विशेषणों में
| दस-बीस, साठ-सत्तर, थोड़ा-सा।
(v) जब कोई शब्द किसी पंक्ति में अधूरा रह जाये तो उसके बाद योजक चिह्न लगा कर नयी पंक्ति का प्रारम्भ भी योजक चिह्न से ही करते हैं।
निर्देश चिह्न ()
यह योजक चिह्न से बड़ा होता है। इसका प्रयोग विवरण देने के लिए तथा प्रस्तुत करते समय एक विचार के बीच में दूसरे विचार के आ जाने पर होता है। यथा
(अ) गद्य-साहित्य के अनेक रूप हैं-कहानी, उपन्यास, नाटक आदि।
(ब) बापू ने दो बातें सत्य बोलना और हिंसा न करना—सभी को सिखाईं।
(स) अमेरिका–धन के दर्प में डूबा है—एक दिन पछतायेगा। (द) भारत में सभी खनिज-लोहा, सोना, ताँबा, कोयला मिलते हैं।
विवरण चिह्न (:)
जब वाक्य या उपवाक्य की व्याख्या की जाये या विस्तार से उसका विवरण दिया जाये, वहाँ इसका प्रयोग होता है। कुछ लोग तो निर्देशक (-) को भी इसके स्थान पर प्रयुक्त करते हैं। इन दोनों में कोई सूक्ष्म अन्तर नहीं होता है। यथा–
(अ) बढ़ती हुई महँगाई को रोकने के लिए निम्नलिखित सुझाव प्रस्तुत हैं
(i) अनाज तथा अन्य खाद्य पदार्थों के ऊपर से प्रतिबन्ध हटा दिया जाये।
(ii) काले धन तथा चोरबाजारी पर अंकुश किया जाये।
(iii) उद्योग-धन्धों का विस्तार हो।
(ब) निम्नलिखित शब्दों के विलोम लिखिए
पक्ष, दिन, ज्ञान, पाप, अच्छा, स्त्री।
कोष्ठक
वाक्यों में किसी पद या शब्द को अधिक स्पष्ट करने के लिए इनका प्रयोग होता है। कोष्ठकों में प्रयुक्त शब्दों का वाक्य से कोई सम्बन्ध नहीं होता। विशेषतः नाटकों में अभिनय
सम्बन्धी निर्देश का संकेत इस रूप में किया जाता है। कभी-कभी हिन्दी का कोई शब्द प्र न हो तो उसके प्रयोग के साथ कोष्ठक में प्रचलित अंग्रेजी शब्द को भी लिख दिया जाता। यथा–
- अपने लिये दसरों को कष्ट देना (चाहे वह लेख पढ़ने का ही क्यों न हो) अक्षम्य दोष
(ii) इनके शरीर में नाल-तन्त्र (Canal system) होता है।
कभी-कभी हिन्दी वाक्यों के बीच में आने वाले संस्कृत वाक्य या वाक्यांश के लिः कोष्ठक का प्रयोग होता है। यथा।
- किन्तु मैंने श्रीमदभगवदगीता की उदारता का आशय लेकर (ये यथा मा प्रपद्यन्ते तार भजाम्यहम) अपनी ही मनमानी की।
उद्धरण चिह्न (‘ ‘ * *)
ये दो प्रकार के होते हैं—इकहरे और दोहरे।
इकहरे उद्धरण चिह्न का प्रयोग पुस्तक, समाचार-पत्र, लेखक के उपनाम, लेख के अथवा किसी वाक्य-विशेष को अपने शब्दों में अवतरित करने के लिए होता है। (‘) यथा-
(अ) ‘अमर उजाला उत्तर भारत का लोकप्रिय समाचार-पत्र है।
(ब) ‘भारत में बेरोजगारी’ विषय पर निबन्ध लिखो।
(स) ‘प्रसाद’ छायावाद के जन्मदाता थे।
(द) ‘रामचरितमानस’ धार्मिक तथा साहित्यिक ग्रन्थ हैं।
इसके विपरीत दुहरे उद्धरण-चिह्न का प्रयोग किसी महत्त्वपूर्ण कथन, कहावत, सूक्ति अथवा पुस्तक के अवतरण का ज्यों का त्यों उद्धृत करते समय किया जाता है। यथा-
(अ) “श्रद्धा और प्रेम के योग का नाम भक्ति।” ।
(ब) “दर्शन में जो अद्वैत है, काव्य में उसे ही रहस्यवाद कहा जाता है।”
(स) “परोक्तं न मन्यते” का गुण या अवगुण पण्डितों और मूर्खा में समान रूप से रहता है।
(द) “परहित निरत निरन्तर मन क्रम वचन नेम निबहौंगौ” के संकल्प को आलस और स्वार्थवश न निभा सका।
लोपसूचक चिह्न ( )
जब हम पूरा उद्धरण न देकर अधूरा उद्धरण देते हैं तो लोपसूचक चिह्न लगा देते है। जैसे
या अनुरागी चित्त की गति समुझै नहिं कोय।
X X X
संक्षेप चिह्न ()
जब हम किसी शब्द को पूरा न लिखकर संक्षिप्त रूप में लिखते हैं तब इस चिह्न का प्रयोग किया जाता है। जैसे|
रा. च. मानस = रामचरितमानस
जी. के. अग्रवाल = गोपाल कृष्ण अग्रवाल
पी. के. बनर्जी = प्रेम कुमार बनर्जी
हंसपद चिह्न
कभी-कभी हाथ से लिखते समय कोई शब्द छूट जाता है तब पंक्ति के दो शब्दों के बीच हंसपद चिह्न लगाकर उस छूटे हुए शब्द को पंक्ति के ऊपर लिख दिया जाता है। जैसे
पुत्र
(i) दशरथ के ^ राम ने रावण को मारा।।
पुत्री
(ii) सीता जनक की ^ थी।
यहाँ पहले वाक्य में पुत्र शब्द छूट गया था जिसे लिखने के लिए व्या स्थान हमद चिह्न जाकर ऊपर छूटा शब्द (पुत्र) को लिन्छ या है। ट्रेन द्रा में इत्री शब्द छुट गया था जिसे पट चिह्न लगाकर लिख दिया गया है।
पुनरुक्ति मृचक चिह (” ” ” )
जब अपर कही गयी बात ही नीचे पुनरुति करना है तो उसे दुबारा न कि पुनरु सुचक चिह्न से घोषित किया जाता है। यथा
- श्रीमान सोहन सिंह जी
” प्रेम प्रकाश जी
” लाखन लाल जी
(ii) वे दिन, निर्मल वर्मा, पृ. 75
” ” पृ. 180)
” ” पृ. 310
अवतरण चिह्न
अवतरण चिह्न दो प्रकार के होते हैं
1, इकहरा अवतरण चिह्न (*……)
- दुहरा अवतरण चिह्न (*….)
1, इकहरा अवतरण चिह्न (……)
इस चिह्न का प्रयोग किसी भी कवि या लेखक का उपनाम, पुस्तक, पाउँ का शीर्षक, समाचार-पत्र-पत्रिकाओं आदि के नाम लिखने में किया जाता है। जैसे –
1. सूर्यकान्त त्रिपाठी “निराला’ का ‘परिमल’ ग्रन्थ।
2. ‘बाल भारती बच्चों की पुस्तक है।
3. दूसरे पाठक का शीर्षक है उत्साह |
2, दुहरा अवतरण चिह्न (……)
इन चिह्न का प्रयोग लेखक या वक्ता के कथन को यथावत् उद्धृत करने में किया जाता है। जैसे – रामचन्द्र वर्मा बोलने और लिखने में दो बार्ता का महत्व सबसे अधिक है – एक तो अर्थ का और दूसरा भाव का
अध्याय सार
- विराम-चिन्ह का एकमात्र उपयोगिता है- वक्ता या लेखन के कथन को पृर्णत; स्पष्ट करना।
- हिन्दी में प्रमुख विराम चिन्ह –
अर्द्धविराम (:) अल्पविराम (,)
प्रश्नवाचक चिन्ह (?) पूर्णविराम (1)
भोजक चिन्ह (-) विस्मयादिबोधन (!)
विवरण चिन्ह (:-) निर्देश चिन्ह (-)
कोष्टक चिन्ह (O) उद्धव चिन्ह (?)
लोप सूचक (xxx) संक्षेप चिन्ह (0)
हंस पद चिन्ह पुनरूति सूचक चिन्ह
अवतरण चिन्ह दो प्रकार के होते हैं
1. इकहरा अवतरण चिन्ह (‘…….’)
2. दुहरा अवतरण चिन्ह (“……..”)
प्रश्नावली
लघु उत्तरीय प्रश्न
1, विराम चिह्न क्या है ?
2. अल्पविराम की उदाहरण सहित परिभाषा लिखो।
3. प्रश्न वाचक चिह्न को परिभाषित करो।
4. पुनरुक्ति सूचक की परिभाषा लिखो।
5. उद्धरण चिह्न क्या है ?
वस्तुनिष्ठ प्रश्न
1. अल्पविराम का शब्दिक अर्थ है –
(A) ठहरना (B) थोड़ा करना
(C) अधिक ठहरना। (D) अ,ब तथा स
(B)
2. अर्द्धविराम का अर्थ है –
(A) ठहरना (B) थोड़ा करना
(C) थोड़े से अधिक ठहरना (D) अ,ब तथा स
(C)
3. पूर्णविराम का अर्थ होता है –
(A) पूरी तरह ठहरना (B) ठहरना।
(C) थोड़ा ठहरना (D) थोड़े से ज्यादा ठहरना
(C)
4. प्रश्नवाचक का चिह्न है –
(A) ; (B) |
(C) , (D) ?
(D)
5. हर्ष, विषाद, घृणा आदि में किस चिह्न का प्रयोग होता है?
(A) ! (B) ?
(C) ; (D) “……..”
(A)
6. (-) चिह्न को क्या कहते हैं ?
(A) विस्मयादिबोधक (B) योजक
(C) लोप (D) विवरण
(B)
7. (०)चिह्न को क्या कहते हैं ?
(A) कोष्ठक चिह्न (B) पुनरुक्ति चिह्न
(C) संक्षेप चिह्न (D) उद्धरण चिह्न
(C)
8. हंसपद चिह्न को दर्शाते हैं ?
(A) ०। (B) ‘……।
(C) । (D) ।
(D)
9, लोपसूचक चिह्न है –
(A) ” (B) ‘…
(C) ; (D) %%%
(D)
10. ({}) यह किसका चिह्न है ?
(A) कोष्ठक (B) संक्षेप
(C) लोपसूचक (D) पुनरुक्ति
(A)
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