DElEd 1st Semester Sanskrit Short Sample Paper Question Answer

प्रश्न 9.‘कारक’ को संस्कृत में क्या कहा जाता है ?
अथवा संस्कत में विभक्तियाँ कितनी हैं ? चिह्न सहित उल्लेख कीजिए।
( बी.टी.सी. 2017) उत्तर–क्रिया के साथ प्रत्यक्ष सम्बन्ध रखने वाले विभक्ति युक्त रूपों को ‘कारक’ कहा जाता है। संस्कृत में कारक को ‘विभक्ति’ भी कहते हैं। कारक अथवा विभक्ति निम्न प्रकार हैं
विभक्ति | कारक | चिह्न (परसर्ग |
(i) प्रथमा | कर्ता | ने (या कुछ नहीं) |
(ii) द्वितीया | कर्म | को (या कुछ नहीं) |
(iii) तृतीया | करण | से, के साथ, द्वारा |
(iv) चतुर्थी | सम्प्रदान | के लिए |
(v) पञ्चमी | अपादान | से (अलग होने में) |
(vi) षष्ठी | सम्बन्ध | का, की, के, रा, री, रे |
(vii) सप्तमी | अधिकरण | में, पै, पर |
(viii) सम्बोधन | सम्बोधन | हे! अरे ! भो! |
प्रश्न 10. संज्ञा किसे कहते हैं ? इसके कितने भेद हैं? ( बी.टी.सी. 2015) उत्तर
संज्ञा से आशय जिससे किसी प्राणी, वस्तु, स्थान या भाव का बोध होता है, उसे संज्ञा कहते हैं; जैसे
(1) प्राणियों के नाम—मनोज, रागिनी, कुत्ता, भैंस, टिड्डा, चिड़िया, आदि।
(2) वस्तुओं के नाम–कुर्सी, पलंग, मेज, टी.वी., मोबाइल आदि।
(3) स्थानों के नाम–लखनऊ, कानपुर, भोपाल, इलाहाबाद आदि।
(4) भावों के नाम–प्रेम, घृणा, लड़ाई, बुराई, बुढ़ापा, मिठास, क्रोध, शान्ति, ईष्र्या आदि ।
संज्ञा के भेद
संज्ञा के प्रमुखत: तीन भेद होते हैं.
(1) व्यक्तिवाचक संज्ञा–जो शब्द किसी विशेष प्राणी, वस्तु या स्थान के भाव को बोध कराते हैं, व्यक्तिवाचक संज्ञा कहलाते हैं; जैसे—भगतसिंह, पहाड़, जेल आदि।।
(2) जातिवाचक संज्ञा–जो शब्द किसी प्राणी, स्थान या वस्तु की जाति या समूह का बोध कराते हैं, जातिवाचक संज्ञा कहलाते हैं; जैसे—पुरुष, गेंद, घर इत्यादि।
(3) भाववाचक संज्ञा–जो शब्द किसी भाव, गुण, दोष, स्वभाव आदि का बोध $ धाववाचक संज्ञा कहलाते हैं; जैसे—मिठास, प्रेम, क्रोध, बुढ़ापा आदि।
(vii) प्रदेश में नाम बहुधा बहुवचन में आते हैं; जैसे—बंगेषु, मगधेषु, कलिंगेषु आदि। |
(viii) अस्मद् शब्द का प्रयोग कभी-कभी बहुवचन में भी होता है, यद्यपि कहने और करने वाला व्यक्ति एक ही होता है; जैसे—वयमपि भवत्योः सखीगतं किमपि पृच्छामः।
(ix) कति आदि शब्द नित्य बहुवचनान्त ही होते हैं तथा जलवाचक अप् शब्द भी। बहुवचन होता है; जैसे—आप: पुनन्तु । तत्र कति स्त्रियः सन्तिः। कति जन तत्र विद्यन्ते।
(x) पञ्च से अष्टादशन् तक के सभी शब्द बहुवचनान्त ही होते हैं।
(xi) आदरसूचनार्थ भी एकवचन के स्थल में बहुवचन का प्रयोग होता है; जैसेमागताः भवन्तः पूज्यजनाः।
| (xii) वर्षा, दशा, सिकता, समा आदि भी बहुवचन होते हैं; जैसे—वर्षासु जलदाः, सिकतासु तैलम् आदि।
(xiii) दारा (पत्नी), प्राण, अक्षत्, अपसरस् बहुवचनान्त ही होते हैं; जस–रामस्थ, दारा, दशथस्य प्राणः अक्षताः पावयन्तु।
कुछ विद्वान अंग्रेजी व्याकरण के प्रभाव के कारण संज्ञा शब्द के दो भेद मानते हैं (अ) समुदायवाचक संज्ञा, (ब) द्रव्यवाचक संज्ञा ।।
( अ ) समुदायवाचक संज्ञा जिन संज्ञा शब्दों से व्यक्तियों, वस्तुओं आदि के समूह का बोध हो, उन्हें समुदायवाचक संज्ञा कहा जाता है; जैसे सभा, कक्षा, सेना, भीड़, पुस्तकालय, दल आदि।। | ( ब ) द्रव्यवाचक संज्ञा जिन संज्ञा शब्दों से किसी धातु, द्रव्य आदि पदार्थों का बोध हो, उन्हें द्रव्यवाचक संज्ञा कहा जाता है; जैसे—घी, तेल, सोना, चाँदी, पीतल, चावल, गेहूँ, कोयला, लोहा आदि।
प्रश्न 11. कुछ संज्ञा शब्दों के पुल्लिंग एवं स्त्रीलिंग के रूप में लिखिए। उत्तर
संज्ञा-शब्द
पुल्लिंग
आत्मन् ।
विभक्ति | एकवचन | द्विवचन | बहुवचन |
प्रथमा | आत्मा | आत्मानौ | आत्मानः |
द्वितीया | आत्मानम्। | आत्मनौ | आत्मनः |
तृतीया | आत्मना | आत्मभ्याम् | आत्मभिः |
चतुर्थी | आत्मने | आत्मभ्याम् | आत्मभ्यः |
इसी प्रकार अश्मन् (पत्थर), अध्वन् (मार्ग), ब्रह्मन् (ब्रह्मा) इत्यादि के रूप चलते हैं।
राजन् (राजा)
विभक्ति | एकवचन | द्विवचन | बहुवचन |
प्रथमा | राजा | राजानौ | राजानः |
द्वितीया | राजानम् | राजानौ | राज्ञः |
तृतीया | राज्ञा | राजभ्याम् | राजभिः |
चतुर्थी | राज्ञे | राजभ्याम् | राजभ्यः |
पञ्चमी | याज्ञः | राजभ्याम् | राजभ्यः |
षष्ठी। | राज्ञ: | राज्ञोः | राज्ञाम्। |
सप्तमी | राज्ञि/राजानि | राज्ञोः | राजसु |
सम्बोधन। | हे राजन्! | हे राजनौ ! | हे राजानः! |
विद्वस (विद्वान)
विभक्ति | एकवचन | द्विवचन | बहुवचन |
प्रथमा | विदान | विदासों | विदासरं: |
द्वितीया | विदासम् | विदांसौं | विदुष: |
तृतीया | विदुषा | विददभ्याम् | विददभि: |
चतुर्थी | विदुषे | विददभ्याम् | विददभ्य: |
पञ्चमी | विदुष: | विददभ्याम् | विददभ्य: |
षष्ठी। | विदुष: | विदुषों: | विदुषाम् |
सप्तमी | विदुषि | विदुषो: | विद्त्सु |
सम्बोधन। | हे विदान। | हे विदांसौ | हे विदांस। |
स्त्रीलिंग मातृ (माता)
विभक्ति | एकवचन | द्विवचन | बहुवचन |
प्रथमा | माता | मातरौ | मातर: |
द्वितीया | मातरम् | मातरौ | मातृ |
तृतीया | मात्रा | मातृभ्याम् | मातृभि: |
चतुर्थी | मात्रे | मातृभ्याम् | मातृभ्य: |
पञ्चमी | मातु: | मातृभ्याम् | मातृभ्य: |
षष्ठी। | मातु: | मात्रो: | मातृणाम् |
सप्तमी | मातरि | मात्रो: | मातृषु |
सम्बोधन। | हे मात: | हे मातरौ। | हे मातर: |
इसी प्रकार दुहितृ (पुत्री), यातृ (देवरानी) आदि का रूप चलता है।
वाच् (वाणी)
विभक्ति | एकवचन | द्विवचन | बहुवचन |
प्रथमा | वाक्/वाग् | वाचौ | वाच: |
द्वितीया | वाचम् | वाचौ | वाच: |
तृतीया | वाचा | वाग्भ्याम् | वाग्भि: |
चतुर्थी | वाचे | वाग्भ्याम | वाग्भ्य: |
पञ्चमी | वाच: | वाग्भ्याम् | वाग्भ्य: |
षष्ठी। | वाच: | वाचों: | वाचाम् |
सप्तमी | वाचि | वाचो: | वाक्षु |
सम्बोधन। | हे वाक्/वाग् | हे वाचौ | हे वाच: |
इसी प्रकार त्वच्, शुच्, ऋच् आदि शब्दों के रूप चलते हैं।
सरित् (नदी)
विभक्ति | एकवचन | द्विवचन | बहुवचन |
प्रथमा | सरित् | सरिती | सरित: |
द्वितीया | सरितम् | सरितौ | सरित: |
तृतीया | सरिता | सरिद्भ्याम् | सरिदभि: |
चतुर्थी | सरित: | सरिदभ्याम् | सरिद्भ्य: |
पञ्चमी | सरित: | सरिदभ्याम् | सरिद्भ्य: |
षष्ठी। | सरित: | सरितो: | सरिताम् |
सप्तमी | सरिति | सरितो: | सरित्सु |
सम्बोधन। | हे सरित् | हे सरितौ | हे सरित: |
इसी प्रकार विद्युत, योषित् (स्त्री) आदि शब्दों के रूप चलते हैं।
दिक् (दिशा)
विभक्ति | एकवचन | द्विवचन | बहुवचन |
प्रथमा | दिक्/ दिग् | दिशौ | दिश: |
द्वितीया | दिशम् | दिशौ | दिश: |
तृतीया | दिशा | दिग्भ्याम् | दिग्भि: |
चतुर्थी | दिशे | दिग्भाम् | दिग्भ्य: |
पञ्चमी | दिश: | दिग्भ्याम् | दिग्भ्य: |
षष्ठी। | दिश: | दिशों: | दिशाम् |
सप्तमी | दिशि | दिशों: | दिक्षु |
सम्बोधन। | हे दिक्/दिग्। | हे दिशौ। | हे दिश:। |