DElEd 1st Semester Science 3rd 4th Science Short Question Answer Paper
प्रश्न 20. पादपों में जनन कितने प्रकार का होता है? अलैंगिक जनन की विधियों का वर्णन कीजिए।
उत्तर- पौधों में पाई जाने वाली जनन विधियों को दो श्रेणियों में विभक्त किया जा सकता है—अलैंगिक जनन तथा लैंगिक जनन। । पादपों में अलैंगिक जनन (Asexual Reproduction in Plants)- अलैंगिक जनन में दैहिक कोशिकाओं से नवीन जीव उत्पन्न होते हैं तथा जनन इकाइयाँ या तो बनती ही नहीं अथवा बिना अर्धसूत्री विभाजन से बनती हैं। पादपों में अलैंगिक जनन की निम्न विधियाँ पायी जाती हैं
(i) विखण्डन (Fission)- यह एककोशिकीय जीवों में पाया जाता है। इसमें कोशिका सूत्री अथवा असूत्री विभाजन द्वारा दो अथवा अधिक कोशिकाओं में विभक्त हो जाती हैं और संतति कोशिकाएँ नया जीव बनाती हैं।
जीवाणुओं व प्रोटोजोआ में विखण्डन द्वारा जनन होता है। मलेरिया परजीवी जैसे एककोशिक प्रोटोजोआ में जनन बहुखण्डन विधि से होता है। । (ii) बीजाणु निर्माण (Spore Formation)-कम विकसित पादपों में दृढ़ आवरण वाली विशेष एककोशिक रचनाएँ बनती हैं, जिन्हें बीजाणु कहा जाता है। ये प्रतिकूल वातावरण में सुरक्षित रहते हैं और अनुकूल परिस्थितियाँ आने पर अंकुरित होकर नवीन पादप बनाते हैं। कवक तथा शैवाल में बीजाणु निर्माण द्वारा जनन होता है। | (iii) कलिकोत्पादन (Budding) -यीस्ट कोशिका से छोटे कलिका सदृश उभार अथवा मुकुल बनते हैं, जो कोशिका से पृथक् होकर नयी यीस्ट कोशिकाएँ बनाती हैं। यीस्ट में ये मुकुल मातृ कोशिका से अलग हुए बिना मुकुल बना लेते हैं, जिससे एक की यीस्ट कोशिका पर मुकुलों (कलिकाओं) की श्रृंखला बन जाती है।
(iv) खण्डन (Fragmentation)-सरल संरचना वाले बहुकोशिक पा स्पाइरोगाइरा का फिलामेन्ट छोटे-छोटे टुकड़ों में टूट जाता है और प्रत्येक खण्ट में विकसित हो जाता है। | (v) कायिक जनन (Vegetative Propagation)- कायिक अथवा वध = अलैंगिक जनन की वह विधि है जिसमें पादप शरीर के किसी भी कायिक भाग का विकास होता है। पौधों के निम्नलिखित भागों से कायिक जनन होता है।
- जडों द्वारा, (ब) पत्तियों द्वारा, (स) तनों द्वारा, (द) पत्र कलिकाओं द्वारा।
प्रश्न 21. पौधों में लैंगिक जनन का वर्णन कीजिए।
उत्तर-लैंगिक जनन में अर्धसूत्री कोशिका विभाजन द्वारा हैप्लॉयड जनन कोणि अथवा युग्मक बनते हैं, जो दो प्रकार के होते हैं—नर युग्मक तथा मादा युग्मक। एक न एक मादक युग्मक के मिलने से डिप्लॉयड युग्मनज (Diploid Zygote) बनता है। बारम्बार विभाजित होकर बीज बनाता है। बीज नवीन पौधे को जन्म देता है। अतः लैंगिक जनन को निम्नलिखित चार चरणों में विभक्त किया जा सकता है
(i) युग्मक जनन- अर्धसूत्री विभाजन द्वारा अगुणित युग्मक कोशिका का निर्माण युग्मक जनन कहलाता है। यह दो प्रकार का होता है
(a) नर युग्मक जनन, (b) मादा युग्मक जनन।।
(ii) परागण–पराग कणों का पराग कोषों से निकलकर स्त्री केसर के वर्तिकाग्र तक पहुँचने की क्रिया।
(iii) निवेचन-नर तथा मादा युग्मक केन्द्रकों के मिलने से द्विगुणित युग्मनज जाइगोट का निर्माण। | (iv) पुष्पी पौधों में लैंगिक जनन-आवृतबीजी (एंजिओस्पर्म) पौधों में नर एवं मादा जननांग पुष्पों में स्थित होते हैं। पुष्पों को रूपान्तरित शाखा कहा जाता है। इसमें निम्नलिखित चार चक्र (Whorls) होते हैं
(अ) बाह्यदल, (ब) दल, (स) पुमंग या एंड्रोशियम : नर जनन अंग, (द) जायांग अथवा गाइनीशियम।
vvvvvvvvvvvvvvvv
प्रश्न 22. भ्रूणकोष का विकास बताइए।
उत्तर–कार्यरत गुरुबीजाणु में सूत्री विभाजन के पूर्व दो, फिर दो से चार तथा चार से आठ केन्द्रक बनते हैं, जिसके चारों ओर थोड़ा-थोड़ा कोशिकाद्रव्य एकत्र हो जाता है। भ्रूणकोष के आठ केन्द्रकों में से चार एक सिरे पर एवं चार दूसरे सिरे पर होते हैं। भ्रूणकोष मध्यम गति से आकार में बढ़ता है। दोनों सिरों के केन्द्रक ध्रुवीय केन्द्रक (polar nuclei) कहलाते हैं। इनके मध्य में उपस्थित केन्द्रकों के जुड़ने से द्वितीयक केन्द्रक (secondary nucleus) बनता है। इसमें बीजाण्डद्वार (micropyle) की ओर उपस्थित तीन केन्द्रका समूह को अण्ड उपकरण (egg apparatus) तथा निभाग की तरफ के तीन केन्द्रका के समूह को प्रतिव्यासांत कोशिकाएँ कहते हैं।
अण्ड उपकरण के मध्य की कोशिका अण्ड कोशिका (egg cell) कहलाती है इसकी दो अन्य कोशिकाओं को सहायक कोशिका कहते हैं। ये सहायक का निषेचन में मदद करती हैं।
इस प्रकार विकसित भ्रूणकोष को पोलीगोनम टाइप भ्रूणकोष तथा मादा युग्मकोभिद कहा जाता है।
प्रो. पी. माहेश्वरी के अनुसार भ्रूणकोष मुख्यत: तीन प्रकार के होते हैं
(अ) मोनोस्पोरिक (Monosporic)-जब भ्रूणकोष का निर्माण चार में से एक (अण्डद्वारी या निभागी) गुरुबीजाणु द्वारा होता है; जैसे—पोलीगोनम टाइप तथा ओइनोथेरा टाइप।
(ब) बाइस्पोरिक (Bisporic)-जब गुरुबीजाणु मातृकोशिका में अर्द्धसूत्री विभाजन द्वारा चार की जगह केवल दो ही कोशिकाएँ निर्मित हैं अर्थात् दूसरे विभाजन के बाद कोशिका भित्ति नहीं बनती है फलतः दोनों कोशिकाओं में दो-दो केन्द्रक बनते हैं। एक कोशिका (द्विकेन्द्रकीय) से भ्रूणकोष बनता है एवं दूसरी स्वत: ही नष्ट हो जाती है; जैसेप्याज (Onion)।
(स) टेट्रास्पोरिक (Tetrasporic)- अर्द्धसूत्री विभाजन के फलस्वरूप गुरुबीजाणु मातृकोशिका में चार केन्द्रक निर्मित होते हैं। परन्तु इसमें कोशिकाभित्ति पुन: नहीं बनती है। फलत: चारों केन्द्रक भ्रूणकोष के निर्माण में भाग लेते हैं; जैसे- पेपरोमिया टाइप एवं एडोक्सा टाइप।।