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DElEd Semester 1 Social Studies Samajik Adhyan Short Question Answers in Hindi

DElEd Semester 1 Social Studies Samajik Adhyan Short Question Answers in Hindi

प्रश्न 23. दिशाओं से आप क्या समझते हैं? स्पष्ट कीजिए।

उत्तर – दिशाओं – वास्तुशास्त्र में दिशाओं की एक महत्वपूर्ण भूमिका मानी जाती है वास्तुशास्त्र के अनुसार एक इमारत की संरचना बनाने के लिए दिशाओं का सही ज्ञान होना अत्यन्त आवश्यक है। पुराने समय में लोगों को प्रति मिनट दिशाओं की जाँ करने की अत्यन्त आवश्यकता होती है, जो सूर्य की छाया देखने हेतु प्रयोग की जाती है। आधुनिक तकनीकी दुनिया में चुम्बकीय कम्पास दिशाओं की जाँच करने हेतु प्रयोग किया जाता है। प्रारम्भ में केवल 8 दिशाएं उपलब्ध थी परन्तु कम्पास द्वारा जाँच करने के बाद 10 दिशाएँ ज्ञात की गई। कम्पास की त्रिज्या कुल 360 डिग्री है। प्रत्येक दिशा की 45 डिग्री पर जाँच की जात है।

दस दिशाओं में चार मुख्य दिशाएँ मानी जाती हैं- पूर्व, पश्चिम, उत्तर और दक्षिण।

उपदिशाएँ

  1. पूर्व दिशा (East Direction) – इस दिशा में प्रमुख देवता इन्द्र का स्वामित्व हैं वर्षा इन्द्र देवता के स्वामित्व में है। हिन्दू देवता सम्पूर्ण समृद्धि उत्सव और शक्ति हेतु उत्तरदायी माने जाते हैं। Manipulation में इन्द्र देवता बहुत शक्तिशाली देवता हैं। इस दिशा के प्रतिनिधि ग्रह भगवान सूर्य हैं। सूर्य जीवन, वनस्पति आदि में वृद्धि करता है। उत्तर दिशा के पश्चात् पूर्व दिशा को भी प्रकाश युक्त एवं स्वच्छ रखना चाहिए। इस दिशा की तरफ भारी दीवारों वेटिलेशन, दरवाजे और खिड़कियां नहीं होनी चाहिए क्योंकि यह जीवन में स्थिरता प्रदान करता है। इस दिशा में शौचालय या दुकान बनाना भी एक वास्तु अपराथ हैं।
  2. पश्चिम दिशा (West Direction) – पश्चिम दिशा को जीवन में स्थिता के लिए जाना जाता है। इस दिशा के स्वामी भगबान वरूण वर्षा, भाग्य और प्रसिद्धि के देवता हैं। वास्तु के अनुसार पश्चिम दिशा पेट के निचले हिस्से जननांगों के कब्जे में रहती है। यह दिशा प्रवेश हेतु अच्छी नहीं मानी जाती है। यह आय के स्त्रोतों को कम करती है।
  3. उत्तर दिशा (North Direction) – उत्तर दिशा एक बहुत अच्छी दिशा मानी जाती है। इस दिशा के स्वामी कुबेर एक हिन्दू देवता हैं जो धन और समृद्धि के लिए जाने जाते हैं इस दिशा को धन और कैरियर की दिशा कहा जाता है। इस दिशा के ग्रह बुध हैं।
  4. दक्षिण दिशा (South Direction) – दक्षिण दिशा सदैव अशुभ मानी जाती है। दक्षिण दिशा में प्रवेश द्वारा नहीं होना चाहिए। इस दिशा के स्वामी यम है। यह एक हिन्दू देवता हैं जो मृत्यु हेतु जाने जाते हैं। दक्षिण दिशा से प्रवेश करना मृत्यु के समान अनेक प्रकार की समस्याएँ उत्पन्न करता है। दक्षिण दिशा के स्वामी न्याय एवं कानून सम्बन्धी मामलों के प्रभारी भी हैं। यदि कोई दक्षिण दोष से ग्रस्त हैं तो वह जीवन में अन्याय एवं कानून मुद्दों हेतु तैयार रहे।
  5. पूर्वोत्तर दिशा (North East) – इस दिशा के हिन्दुओं के सर्वोच्च देवता भगवान शिव हैं। बृहस्पति इस दिशा का प्रतिनिधि ग्रह है। बृहस्पति ग्रह पूर्वात्तर दिशा को ज्ञान और आध्यात्मक विकास प्रदान करता है, यह दिशा विदान, छात्रों के लिए अच्छी दिशा मानी जाती है। यह क बहुत पवित्र तथा संवेदनशील दिशा है। वास्तुशास्त्र के अनुसार 60% व्यक्ति उत्तर- पूर्व दिशा में झूठ बोलते हैं। यह दिशा व्यापार को नष्ट कर देती है। इस दिशा में अग्नि तत्व का निर्माण एक बड़ी दुर्घटना को जन्म देता हैं।
  6. दक्षिण- पूर्ण (South East) – दक्षिण – पूर्व दिशा की प्रकृति बहुत ही संवेदनशील होती है। दक्षिण –पूर्व के देवता भगवान अग्निदेव हैं। इस दिशा का प्रतिनिधि ग्रह शुक्र है। यह भगवान सूर्य का मुख्य स्थल है। दक्षिण- पूर्व दिशा हमेशा आग से सम्बन्धित कार्यों के लिए आबटिंत की गई है।
  7. दक्षिण – पश्चिम – यह दिशा नैऋत्व के नाम से जानी जाती है। यह दिशा अग्नि देव के द्वारा नियन्त्रित होती है। इसका प्रतिनिधि ग्रह राहु नामक राक्षक होता है। भूखण्ड के रूप में यह सबसे मजबूत दिशा है। दक्षिण – पश्चिम का सही उपयोग एक मजबूत एवं स्वस्थ जीवन प्रदान करता है। यह दिशा धन, स्वास्थ्य एवं जीवन में प्रसिद्धि देने वाला होता है।
  8. उत्तर – पश्चिम – उत्तर –पश्चिम दिशा के स्वामी वायुदेव हैं, जो हिन्दू देवता है। इससे पवन तत्व प्रभावित होता है। इस दिशा का ग्रह चन्द्रमा हैं जो हवा तत्व द्वारा संचालित होता है।

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प्रश्न 24. गोलार्द्ध क्या है? स्पष्ट कीजिए।

उत्तर – गोलार्द्ध – गोलार्द्ध तथा ध्रूव का सम्बन्ध ग्लोब से होता है। पूरे विश्व को दो भागों में बाँटकर इन्हें दक्षिणी व उत्तरी गोलार्द्ध के नाम से जाना जाता है। यह भूमध्य रेखा से ऊपर की ओर जाने वाला अन्तिम भाग होता है। इसे दक्षिणी ध्रुव के नाम से जाना जाता है।

भूमध्य रेखा 0 अक्षांश रेखा होती है, जो किसी भी पृथ्वी को दो भागों में विभक्त करती है। भूमध्य रेखा से उत्तर की तरफ जाने वाली रेखा को उत्तरी गोलार्द्ध कहा जाता है व दक्षिण तरफ जाने वाली रेखा दक्षिणी गोलार्द्ध कहलाती है।

उत्तरी गोलार्द्ध मे उष्ण कटिबन्धता व शीतोष्ण कटिबन्धता का क्षेत्र पाया जाता है व दक्षिणी गोलार्द्ध में भी उष्ण व शीतोष्ण कटिबन्धता का क्षेत्र पाया जाता है। प्रत्येक गोलार्ध को ताप के आधार पर कई भागों में विभक्त किया गया है, इन भागों को कटिबन्ध कहा जाता है।

प्रश्न 25. ग्रीष्म ऋतु से आप क्या समझते हैं?

उत्तर – हमारे देश में ग्रीष्म ऋतु मध्य मार्च से मध्य जून तक रहती है। मार्च के अन्त तक सूर्य विषुवत् रेखा को पार कर कर्क रेखा की ओर बढ़ने लगता है। फलत: उच्च ताप की पेटी दक्षिण से उत्र की ओर स्थानान्तरिक हो जाती है। जैसे जैसे सूर्य उत्तर की और बढ़ता जाता है, ताप की पेटी भी उत्तरोत्तर उत्र की ओर खिसकती जाती है। मार्च माह में दक्षिम के पठार पर सर्वाधिक तापमान 380 सेल्यियस रहता है। अप्रैल में ताप पेटी के उत्तर की ओर खिसक जाने से गुजरात एवं मध्य प्रदेश में तापमान 420-430 सेल्यियस हो जाता है। जून के महीने में पंजाब, राजस्थान तथा उत्तर प्रदेश में झुलसा देने वाली गर्मी पड़ती हैं तथा तापमान 450 सेल्सियस से ऊपर दर्ज किये जाते हैं।
इसी समय दक्षिणी भारत में समुद्र के समकारी प्रभाव के कारण तापमान तुलनात्मक रूप से कम पाया जाता है। इस ऋतु में तापमान उत्तर से दक्षिण तथा पश्चिम से पूर्व की ओर क्रमश: घटने लगता है। तापमान की अधिकता के कारण ग्रीष्म ऋतु में देश में वायुदाब न्यून भाग तक एक न्यून हो जाता है। राजस्थान के मरूस्थलीय प्रदेश से लकर पूर्व में पटना एवं छोटा मानसून का न्यून वायुदाब गर्त कहा जाता है। इस निम्न वायुदाब गर्त के इर्द – गिर्द वायु का परिसंचरण होने लगता है। कभी कभी आर्द्रतायुक्त पवने इस निम्न व्युदाब गर्तके निकटवर्ती भागों में खिंट जाती है। शुष्क एवं आर्द्र पवनों के आपसी सम्पर्क में आने के कारण स्थलीय रूप से प्रचण्ड तूफान आ जाते हैं। इस समय पवनों की गति बहुत तीव्र हो जाती है, मूसलाधार वर्षा होती और कभी कभी ओले भी पड़ जाते हैं।

वायुदाब में परिवर्तन के फलस्वरूप वायु की प्रवाह दिशा भी बदलने लगती है। उत्तरी मैदानी भाग में दिन में उष्ण तथा शुष्क रेतीली आँधियाँ चलती हैं जिन्हें स्थानीय भाषा में लू कहा जाता है। बंगाल की खाड़ी में इनकों कालवैशाखी अथवा बोर्डोचिल्ला के नाम से जाना जाता है। इस ऋतु में वर्षा की मात्रा न्यून रहत है। कुछ वर्षा उत्तरी भारत में पश्चिम से आने वाले चक्रवातों से होती है।

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