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DElEd Semester 1 Social Studies Samajik Adhyan Short Question Answers in Hindi

DElEd Semester 1 Social Studies Samajik Adhyan Short Question Answers

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DElEd Semester 1 Social Studies Samajik Adhyan Short Question Answers in Hindi

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DElEd Semester 1 Social Studies Samajik Adhyan Short Question Answers in Hindi

Index

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लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1. ग्राम पंचायत से आप क्या समझते हैं? इसके कार्यकाल एवं कार्य का वर्णन कीजिए।

उत्तर – ग्राम पंचायता का गठन – ग्राम पंचायत का गठन निर्वाचत पंचों एवं सरपंच से होता है। नका निर्वाचन कलेक्टर द्वारा निर्धारित क हजार की जनसंख्या वाली ग्राम सभा कम से कम 10 एवं उससे अधिक जनसंख्या वाली ग्राम सभा में अधिकतम 20 वाडों में बाँटकर ग्रामसभा के सदस्यों द्वारा प्रत्यक्ष रूप से किया जाता है।

ग्राम पंचायत का कार्यकाल – ग्राम पंचायत का कार्यकाल पहले अधिवेशन की तारीख से 5 वर्ष हेतु होता है। इसके अनुसार ग्राम पंचायत के सभी पदाधिकारी पहले अधिवेशन की तारीख से अपने पदों पर 5 वर्ष के लिए बने रहेंगे। यदि कोई पदाधिकारी लोकसभी अथवा विधान सभा हेतु चुन लिया जाता है, तो तत्काल प्रभाव से ग्राम पंचायत का पदाधिकारी नहीं रहता है।

ग्राम पंचायत का पुन: विर्वाचन सामान्य: कालावधि में ही कराया जाता है, परन्तु यदि ऐसा नहीं हो पाता, तो पंचायत विघटित मान ली जाती है और उसके पुनर्गठन 6 माह के अन्दर कराया जाना जरूरी होता है। कर्तव्यापालन में गड़बड़ी के आधार पर पंचायत को सुनवाई का अवसर न प्रदान करके पंचायत को उसके कार्य्काल के पूर्व भंग किया जा सकता है। इस स्थिति में भी पुन: ग्राम पंचायत का गठन 6 माह के अन्दर होना आवश्यक है।

ग्राम पंचायत के कार्य – ग्राम पंचायत के कार्य निम्नलिखित है, जिन्हें वह राज्य सरकार के अधीन रहते हुए करती है-

  1. अपनी आर्थिक क्षमता के अन्तर्गत सार्वजनिक मेलों से पृथक् बाजारों तथा मेलों की स्थापना व प्रबन्ध।
  2. पंचायत क्षेत्र के आर्थिक विकास, सामाजिक न्याय के लिए योजनाएँ तैयार करना तथा उसे जनपद पंचायत की योजना में शामिल करने को भेजना।
  3. स्थानीय योदजनाओं के संसाधनों और व्ययों पर नियन्त्रण रखना।
  4. ग्राम सभा द्वारा गठित समितियों के क्रियाकलापों का समन्वय करना तथा मूल्यांकन करना।
  5. ग्राम पंचायत क्षेत्र में आने वाले कॉलोनियों के निर्माण के आवेदनों पर विचार करना।

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प्रश्न 2. जिला पंचायत का गठन कब हुआ? इसके कार्य स्पष्ट कीजिए।

उत्तर – जिला पंयाजत का गठन- जिला पंयायत के गठन में राज्य सरकार द्वारा जिले हेतु निर्धारित एक सदस्यीय निर्वाचन क्षेत्रों के निर्वाचित प्रतिनिधि शामिल होते हैं। इसके अलावा जिले के क्षेत्र में पूर्णत: या अंशत: स्थित राज्य विधान सभा क्षेत्रों से निर्वाचित राज्य विधान सभा निर्वाचन क्षेत्र के सदस्य भी उसके सदस्य होते हैं, यद्दपि पूर्णत: नगरीय क्षेत्र में स्थित राज्य विधान सभा के सदस्य जिला पंचायत के सदस्य नहीं हो सकते।

राज्य विधान सभा के सदस्या अपने स्थल पर विधिवतृ निर्धारित योग्यता वाले अपने प्रतिनिधि को पंचायत की सदस्यता हेतु अधिकृत कर सकते हैं। जिले में स्थित सह जनपद पंचायतों के अध्यक्ष भी जिला पंचायत के सदस्या होते हैं, परन्तु इस व्यवस्था के अन्तर्गत सदस्य बना जिला पंचायत का सदस्या नहीं हो सकता।

जिला पंचायत के कार्य – जिला पंचायत के प्रमुख कार्य निम्नलिखित हैं-

  1. जिले के आर्थिक विकास व सामाजिक न्याय के लिए वार्षिक योजनाएँ तैयार करना और पंचायत की ऐसी योजनाओं का समन्वय करना।
  2. केन्द्र या राज्य सरकारों द्वारा स्वयं की तैयार परियोजनाओं के सम्बन्ध में वार्षिक योजनाएँ तैयार करना।
  3. जनपद पंचायतों एवं ग्राम पंचायतों के क्रियाकलापों का समन्वय प्रायोजित व मूल्यांकन करते हुए उसका मार्गदर्शन करना।
  4. अपने क्षेत्र की जनपद पंचायतों द्वारा तैयार योजनाओं का पर्यवेक्षण, समन्वय एवं समय सुनिश्चित करना।
  5. जनपद पंचायोतो से किन्हीं विशेष प्रयोजनों के लिए प्राप्त अनुदान प्रस्तावों को समन्वित करके राज्य सरकार को भेजना।
  6. किन्हीं दो अथवा अधिक जनपद पंचायतों की साझे की व परियोजनाओं का निष्पादन करना।

प्रश्न 3. राष्ट्रीय आय की गणना करने की कौन कौन सी विधियाँ है? बताइए।

उत्तर – राष्ट्रीय आय की गणना की विधियाँ – राष्ट्रीय आय की गणना प्रमुख रूप में तीन विधियों से की जाती है-

1. उत्पादन गणना विधि- इस विधि के अनुसार क वर्ष की वधि में उत्पन्न की गई सभी प्रकार की अन्तिम वस्तुओं और सेवाओं का कुल मौद्रिक मूल्य ज्ञात किया जाता है। तत्पश्चात् शुद्ध उत्पत्ति ज्ञात करने हेतु कुल उत्पाद में से चल एवं अचल पूँजी का प्रतिस्थापन बीमा व्यय तथा करों की राशि घटा दी जाती है।

इस शुद्ध उत्पत्ति में विदेश से प्राप्त आय जोड़ने पर शुद्ध राष्ट्रीय आय ज्ञात की जा सकती है। इस रीति को वस्तु सेवा –गणना विधि भी कहा जाता है। इस विधि की सबसे बड़ी कठिनाई यह है कि देश में उत्पादित वस्तुओं और सेवाओं के मूल्य सम्बन्धी सही एवं विस्तृत आँकड़े उपलब्ध नहीं होते

2. आय गणना विधि – आय गणना रीति को व्यावसायिक वस्तुओं और सेवाओं का कुल मौद्रिक मूल्य ज्ञात किया जाता है। तत्पश्चात् शुद्ध उत्पति ज्ञात करने हेतु कुल उत्पाद में से चल एवं अचल पूँजी का प्रतिस्थापन बीमा व्यय तथा करों की राशि घटा दी जाती है। इस शुद्ध उत्पत्ति में विदेश से प्राप्त आय को जोड़ने पर शुद्ध राष्ट्रीय आय ज्ञात की जा सकती है।

3. व्य गणना विधि- आय का प्रयोग दो प्रकार से हो सकता है- उपभोग करके एवं बचत करके। इसलिए राष्ट्रीय आय किसी वर्ष विशेष में उपभोग मूल्य एवं बचत मूल्य का कुल योग ज्ञात किया जाता है। इसमें प्रत्येक व्यक्ति की सम्पूर्ण बचत का मूल्य सम्मिलित किया जाता है।

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