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Ist Samester DEIEd Hindi Bhasha Practice Set Paper 2017

Ist Samester DEIEd Hindi Bhasha Practice Set Paper 2017

Ist Samester DEIEd Hindi  Bhasha Practice Set  Paper 2017

Ist Samester DEIEd Hindi  Bhasha Practice Set  Paper 2017
Ist Samester DEIEd Hindi Bhasha Practice Set Paper 2017

परीक्षा प्रश्न-पत्र (हल सहित)

प्रथम सेमेस्टर-2017

षष्ट्म प्रश्न-पत्र

(हिन्दी)

समय : 1.00 घण्टा]                                                  [पूर्णांक : 25

25 निर्देश :

1. सभी प्रश्न अनिवार्य है। प्रत्येक प्रश्न के निर्धारित अंक प्रश्न के सम्मुख दिये गये हैं। 2. इस प्रश्न पत्र में तीन प्रकार के (बहुविकल्पीय, अतिलघु उत्तरीय तथा लघु उत्तरीय)

वस्तुनिष्ठ प्रश्नों के सही विकल्प छाँटकर अपनी उत्तर पुस्तिका में लिखें। अति लघु उत्तरीय प्रश्नों के उत्तर लगभग तीस (30) शब्दों में, लघु उत्तरीय प्रश्नों के उत्तर लगभग पचास (50) शब्दों में लिखिए।

वस्तुनिष्ठ प्रश्न  

1. देवनागरी लिपि की विशेषता से सम्बन्धित नहीं है

(1) जो बोला जाता है, वही लिखा जाता है।

(2) एक वर्ण में दूसरे वर्ण का भ्रम नहीं होता। |

(3) शिरोरेखा का प्रयोग अनावाश्यक, केवल अलंकरण के लिए।

(4) एक वर्ण संकेत से अनिवार्यतः एक ही ध्वनि व्यक्त होती है।

2. भाषा की सवसे छोटी इकाई है

(1) व्यंजन (2) शब्द । (3) स्वर | (4) वर्ण

3. वर्णमाला का आशय है

(1) शब्द के समूह से (2) वर्गों के संकलन से

(3) वर्गों के व्यवस्थित समूह से (4) शब्द रचना से

4. हिन्दी भाषा में मूलतः वर्गों की संख्या मानी जाती है|

(1) 55        (2) 52        (3) 50        (4) 48

5. अयोगवाह है

(1) विसर्ग (2) अल्प प्राण

(3) महा प्राण (4) संयुक्त व्यंजन

अतिलघु उत्तरीय प्रश्न

6. हिन्दी भाषा के व्यंजन वर्णो के उच्चारण स्थानों के नाम लिखिए। ।

7. संयुक्ताक्षर व्यंजनों को लिखिए।

8. ‘क्ष’ वर्ण किसके योग से बना है?

9. समानार्थी शब्द का आशय लिखिए।

10. व्यंजन का अभिप्राय स्पष्ट कीजिए।

11. हिन्दी भाषा के कौशलों के नाम लिखिए।

लघु उत्तरीय प्रश्न

12. विराम चिह्न कितने प्रकार के होते हैं? उनके नाम लिखिए। ,

13. अशुद्ध उच्चारण के किन्हीं चार कारकों का उल्लेख कीजिए। ।

14. अत्रों के अशुद्ध उच्चारण सुधार हेतु ध्यान देने वाले बिन्दुओं का उल्लेखा कीजिए।

15. उच्चारण शिक्षण की विधियों का संक्षिप्त उल्लेख कीजिए। ।

16. अत्रों में अपेक्षित लेखन कौशलों का विकास किस प्रकार किया जा सकता है? लिखिए।

17. लेखन शिक्षण की विधियों का उल्लेख कीजिए।

18. अर्द्ध विराम तथा पूर्ण विराम का अर्थ स्पष्ट करते हुए उनके एक-एक उदाहरण लिखिए।

उत्तर-पुस्तिका (व्याख्या सहित)

1. (3) शिरारेख का प्रयोग अनावश्यक, केवल अलंकरण के लिये होता है।

2. (4) वर्ण-वर्ण भाषा की सवसे छोटी इकाई है।

3. (3) वर्णे के व्यवस्थित समूह से।

वर्णमाला में वर्ण व्यवस्थित रुप से होते हैं। |

4.(2) 52 |

हिन्दी वर्णमाला में कुल 52 वर्ण है। जिसमें 11 स्वर वर्ण तथा शेष 41 व्यंजन ध्वनियाँ

हैं। किन्तु मूल व्यंजन ने 35 ही होते हैं। ।

5. (1) विसर्ग-स्वरों तथा व्यंजनों से योग्य न रखने वाली ध्वनियों को अयोगवाह नाम दिया।

जाता है अतः विसर्ग अयोगवाह है।

6. हिन्दी भाषा के व्यंजन वर्णो के उच्चारण स्थान निम्नलिखित हैं| कण्ठ, तालु, मूर्धा, दन्त, औष्ठय, नासिका, कण्ठ तालु, कण्ठोष्ठ, दन्तोष्ठ

7. संयुक्ताक्षर व्यंजन क्ष, त्र, ज्ञ, हैं।

8. क्ष वर्ण क्+ष से मिलकर बना हैं।

9. समान अर्थ वाले शब्दों को समानार्थी शब्द कहते हैं।

10. ध्वनियों के उच्चारण में होने वाले यत्न को व्यंजन कहा जाता है।

11. हिन्दी भाषा के कौशल निम्नांकित हैं

 (1) सुचना या श्रवण की दक्षता

(2) बोलना या वाचन की दक्षता

(3) पढ़ना या पठन की दक्षता

(4) लिखना या लेखन की दक्षता

5) व्यावहारिक व्याकरण की दक्षता

(6) विशेष अध्ययन सामग्री की विशेषता

(12).  विराम चिन्हें 14 प्रकार के होते हैं।

अल्प विराम, अर्द्ध विराम, पूर्ण विराम, प्रश्नवाचक चिन्ह, विस्मयादिवोधक योजक निर्देशक, तण उद्धरण, कोष्ठक संक्षेप, लोपसूचक, हंस पद, पुनरुविव।

13. अशुद्ध उच्चारण के चार चार कारक निम्नलिखित हैं

(1) अज्ञानता वश-संस्कृत ध्वनियों के उचित स्वरुप का ज्ञान न होने का उच्चारण अशुद्ध हो जाता जैसे ‘श के स्थान पर ‘स’ बोलना।

(2) उच्चारण स्थान, का सही ज्ञान न होना–ण, न, ब, क आदि वर्ण ।

(3) प्रयस लाघव के कारण-जैसे परमेश्वर, का प्रमेश्वर, आवश्यकता के ‘आवश्यक्ता’ व दु:ख का दुख।

(4) संस्कृत भाषा के अभ्यास का अभाव-अभ्यास के आभाव के कारण भी छात्र अशुद्ध उच्चारण करते हैं।

14. छात्रों के अशुद्ध उच्चारण सुधार हेतु ध्यान देने योग्य बिन्दु

(1) शुद्ध भाषा बोलने वालों की संगति-भाषा का शुद्ध प्रयोग करने वाले व्यक्ति सम्पर्क में रहकर वालक शुद्ध उच्चारण करने लगता है।

(2) शुद्ध उच्चारण का अभ्यास-शुद्ध उच्चारण के लिये आवश्यक है कि छात्र को अभ्यास कराया जाय इस हेतु रेडियो, टी0 वी0 आदि का उपयोग किया जा सकता।

(3) हिन्दी भाषा के ध्वनि तत्व का ज्ञान कराना-अध्यापक को चाहिये कि वह छात्रों के हिन्दी के स्वरों अ, आ, इ, ई आदि व्यंजनो क, ख, ग, आदि का उच्चारण कराये।

(4) पुस्तक के शुद्ध पाठ पर बल देना–पुस्तक पढ़ते समय शुद्ध उच्चारण पर सदैव ध्यान देना चाहिए। छात्र यदि उच्चारण सम्बन्धी कोई त्रुटि करता है तो उसका तुरन्त

संशोधन करना चाहिये।

15. उच्चारण शिक्षण की विधियाँ

(1) विघालय में कोई भी विषय पढ़ाया जाय तो शुद्ध उच्चारण की ओर अवश्य ध्यान दिया जाय।

(2) उच्चारण की प्रतियोगिताये कराई जायें।

(3) भाषण एवं संवाद प्रतियोगिताये आयोजित की जायें।

(4) बालक जिस शब्द का उच्चारण ठीक से नहीं कर पाता उसके शुद्ध स्वरुप का बार-बार अभ्यास कराना चाहिये। (5) बालक अनुकरण से भाषा सीखता है। अतः शुद्ध वोलने वाले व्यक्तियों के सम्पर्क में बालक को रखना चाहिये। (6) अध्यापक कक्षा में शुद्ध उच्चारण करें।

(7) बालकों को व्याकरण के नियमों की पूर्ण जानकारी प्रदान की जाये।

16. छात्रों में अपेक्षित लेखन कौशल की विधियाँ

(1) पत्र लेखन-जीवन में पत्र लेखन का अधिक महत्व है। पत्र कई प्रकार के हो सकतेहै। पत्रों के माध्यम से हम अपने भावों को लिख सकते हैं। जिन्हें हम आमने सामने व्यक्त नही कर सकते।

(2) निबन्ध-यह भी एक कला है। प्रारम्भ में यह लेखन सरल भाषा में होता है। धीरे-धीरे

इस लेखन में विचारात्मक क्षमता उत्पन्न होती है।

  • आत्मकथा-यह लिखित अभिव्यक्ति का अच्छा साधन है। इसका प्रार के जीवन की घटना को लिखकर किया जा सकता है।

(4)कहानी – कहानी का लेखन कराकर भी लिखित अभिव्यक्ति की योग्यता विकसित की जा सकती है। किसी भी विषयवस्तु को लेकर उस पर कोई भी कहानी लिखने को दी जा सकती है।

उपर्युक्त सम्पूर्ण विधियाँ को विकसित करने का अवसर प्रदान करना एक अध्यापक का आवश्यक कर्म है। सभी विधियों को बारी-बारी से विकसित करने का प्रयास किया जाना चाहिये।

17.  लेखन शिक्षण की विधियाँ।

(1) रूपरेखा अनुकरण विधि – इस विधि में शिक्षक श्यामपट्ट या स्लेट पर चौक या पेंसिल से लिख देता है। और छात्र से उन लिखे हुये अक्षरो पर चौक या पेंसिल फेरने के लिये कहता है। |

(2) स्वतंत्र अनुकरण विधि – इस विधि में शिक्षक श्यामपट्ट या स्लेट पर कॉपी पर

अक्षरो या शब्दों को लिख देता है। व छात्रों से कहता है कि वे इन अक्षर या शब्द को देखकर उनमें नीचे उसी प्रकार के अक्षर या शब्द बनायें।।

(3) माण्टेसरी विधि – लेखन शिक्षण की यह मनोवैज्ञानिक व रोचक विधि से लिखते

समय आँख, कान और हाथ तीनो पर बल दिया जाता है। इसमें बालक तीनों बातों का

अभ्यास कर सकता है। (i) कलम पकड़ने का, (ii) अक्षरों की ध्वनि को समझने का।

(4) जेकाटॉट विधि – इस विधि में शिक्षक छात्रों के पढ़े हुये वाक्य को स्वयं लिखकर

उनको लिखने के लिये देता है। छात्र एक-एक शब्द लिखकर शिक्षक द्वारा लिखित

शब्द से मिलान करते हुये अशुद्धियाँ शुद्ध करते हैं।

(5) पेस्टालॉजी विधि – पेस्टालॉजी की इस विधि मे सबसे पहले अक्षर लिखना सिखाया

जाता है। अक्षरों की आकृती को विभिन्न टुकड़ों में विभाजित किया जाता है। उसके बाद टुकड़ो के योग ये उस अक्षर की रचना करायी जाती है।

8. अर्द्धविराम तथा पूर्णविराम का अर्थ

(1) अर्द्धविराम – (%) जहाँ पूर्ण विराम की अपेक्षा कम देर रुकना हैं ओरे अल्पविराम की

अपेक्षा कुछ देर तक रूकना हो तब अर्द्धविराम का प्रयोग किया जाता है। जैसे- फलों में आम को सर्वश्रेष्ट माना जाता हैं; किन्तु श्री नगर मे और ही किस्म के फल विशेष रूप से पैदा होते हैं।

  • पूर्ण विराम – ()-इस चिन्ह का प्रयोग प्रश्नवाचक और विस्मय, सूचक वक्यों को छेड़कर अन्य सभी प्रकार के वाक्यों के अन्त में किया जाता है जैसे- राम स्कूल से आ रहा है।

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