- राजनीतिज्ञों की नीति-
- अपने हथियारों की खपत करना है
- छोटे देशों के कार्य में काँटा बोना है
- काँटो से काँटा निकालना है
- प्रत्येक के लिए काँटो की बाङ बनाना है
- कीचङ से कीचङ धोने की नीति से-
- प्रत्येक राष्ट्र को सफलता मिली है
- हर राष्ट्र उसके सुन्दर परिणाम भोग रहा है
- कोई भी राष्ट्र आज तक सफल नहीं हुआ है
- प्रायः सभी राष्ट्र प्रयासरत् हैं
- उपर्युक्त अनुच्छेद का सर्वाधिक उपयुक्त शीर्षक होगा-
- युद्ध की अनिवार्यता
- राजनीतिज्ञों की चिन्ता
- अखिल विश्व
- विश्व शान्ति
(11)
परमात्मा ही जगत् का आधार व उसका नियंता है, उसकी प्राप्ति ही जीवन का उद्देश्य है. सत्य व अहिंसा उसकी प्राप्ति के प्रमुख साधन हैं. सभी जीव ईश्वर की संतान होने के कारण मूलतः समान हैं.और उनकी सेवा ही भगवान की सच्ची सेवा व उसकी उपासना है, जिसके द्वारा उसकी प्राप्ति हो सकती है. ये प्रायः वे सिद्धान्त हैं जो सभी धर्मों का सार है. ये सभी सिद्धान्त अति प्राचीनकाल से सभी धर्मों में चले आ रहे हैं. सभी धर्मों द्वारा इनका प्रचार रखने वालों के अतिरिक्त सर्वसाधारण के लिए उनमें कोई आकर्षण नहीं रहा है और इसका प्रयोग मुख्यतः मनुष्य के वैयक्तिक जीवन में ही हुआ है.गाँधीजी ने धर्म सर्वसाधारण की वस्तु बनाया और उसके मूल सिद्धान्तों का पुनः प्रतिपादन करते हुए इस बात पर बल दिया कि धर्म व उसके सिद्धान्त केवल व्यक्तिगत जीवन की ही वस्तु नहीं हैं, वरन् उनका सफल प्रयोग सार्वजनिक जीवन में भी किया जा सकता है. इसी प्रकार संसार के झगङों से दूर जाकर भगवान् की उपासना करके उसको प्राप्त करने की बात सदा से कही जाती रही थी पर गांधीजीने संसार को यह बताया कि ईश्वर की सच्ची उपासना संसार में रहकर ईश्वर की संतान मनुष्य जाति की सेवा करके भी की जा सकती है और उसी के द्वारा ईश्वर की प्राप्ति हो सकती है. उन्होंने राजनीतिक क्षेत्र में पदार्पण ही इसलिए किया कि वे मनुष्य जाति की सेवा कर सकें और उसके द्वारा ईश्वर की प्राप्ति कर सकें.
प्रश्न
- उपर्युक्त गधांश में परमात्मा को इस जगत का………. कहा गया है.
- सृष्टिकर्ता और बिध्वंसक
- आधार व उसका नियंता
- प्राणिपालक
- जगतपालक
- दीनदयाल
- गधांश के अनुसार ईश्वर की प्राप्ति के प्रमुख साधन हैं-
- तप और यज्ञ
- पूजा और दान-दक्षिणा
- मन्दिर में ध्यान लगाना
- सत्य और अहिंसा
- ब्राह्माणों को भोजन कराना
- गधांश के अनुसार सभी जीव मूलतः हैं, क्योंकि-
- उनमें रक्त, मांस आदि होता है
- उनमें जैविक लक्षण होते हैं
- वे भोजन अवश्य करते हैं
- वे ईश्वर के भक्त होते हैं
- सभी ईश्वर की संतान हैं
- ईश्वर की सच्ची सेवा व उपासना है-
- मन्दिर में पूजा करना
- साधु-ब्राहमाणों की सेवा करना
- तप और यज्ञ करना
- सभी जीवों की सेवा करना
- इनमें से कोई नहीं
- प्रायः सभी धर्मों का सार है-
- सभी जीवों को ईश्वर की सन्तान मानकर ,उनसे प्रेम करना
- गंगा स्नान करना
- यज्ञ और दान करना
- जप/तप करना
- उपर्युक्त सभी
- सर्वसाधारण के लिए मूलधर्म में कोई आकर्षण नहीं रहा है, क्योंकि-
- धर्म का प्रयोग मुख्यतः मनुष्य के वैयक्तिक जीवन में ही हुआ है
- धर्म का प्रयोग मुख्यतः मनुष्य के सार्वजनिक जीवन में ही हुआ है
- कुछ लोग धर्म के नाम पर ठगी करते हैं
- गरीब व्यक्ति यज्ञादि नहीं कर पाता है
- उपर्युक्त में से कोई नहीं
- गांधीजी ने धर्म को……. बनाया.
- पढे-लिखे युवक-युवतियों के लिए
- संभ्रान्त व्यक्तियों के लिए
- किसान-मजदूरों के लिए
- सर्वसाधारण की वस्तु
- इनमें से कोई नहीं
- गांधीजी के अनुसार ईश्वर सच्ची उपासना-
- संसार त्यागकर तप द्वारा की जा सकती है
- संसार में ही रहकर मानव सेवा द्वारा की जा सकती है
- मन्दिर बनवाकर की जा सकती है
- यज्ञ करके की जा सकती है
- उपर्युक्त सभी
- गांधीजी ने राजनीति में पदार्पण किया, क्योंकि-
- वे देश को आजाद करा सकें
- वे अंग्रेजों को देश से भगा सकें
- वे नेहरू जी को प्रधानमन्त्री बना सकें
- वे मानव जाति की सेवा कर सकें
- इनमें से कोई नहीं
- उपर्युक्त गधांश में लेखक ने पाठक को सभी…….. बताया है.
- धर्मों का सार
- हिन्दू रीति-रिवाज
- कर्मयोग
- सम्प्रदायों का सार
- उपर्युक्त सभी
उत्तरमाला
- (A) (D) 3. (C) 4. (B) 5. (C) 6. (D) 7. (C) 8. (B) 9. (A) 10. (B) 11. (B) 12. (C) 13. (D) 14. (C) 15. (D) 16. (A) 17. (B) 18. (C) 19. (D) 20. (C) 21. (A) 22. (A) 23. (A) 24. (D) 25. (D) 26. (A) 27. (D) 28. (C) 29. (B) 30. (C) 31. (B) 32. (A) 33. (C) 34 (C) 35. (B) 36. (A) 37. (D) 38. (A) 39. (B) 40. (B) 41. (D) 42. (A) 43. (B) 44. (C) 45. (D) 46. (A) 47. (B) 48. (A) 49. (B) 50. (C) 51. (D) 52. (A) 53. (C) 54. (C) 55. (D) 56. (D) 57. (D) 58. (C) 59. (B) 60. (A) 61. (D) 62. (C) 63. (B) 64. (A) 65. (C) 66. (C) 67. (D) 68. (B) 69. (D) 70. (E) 71. (D) 72. (A) 73. (A) 74. (D) 75. (B) 76. (D) 77. (A)