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UPTET Paper Level 1 Samanya Hindi Sabdarthgat Ashudhiya Question Answer Paper

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शब्दार्थगत अशुद्धियाँ

(समानार्थी शब्दों का उचित प्रयोग)

प्रयोग करते समय शब्द का अर्थ ठीक से न जानने पर इस प्रकार की भूलें हो जाती हैं . ऐसा अधिकांशतः समानर्थी शब्दों का प्रयोग करते समय होता है. इस प्रकार के कुछ उदाहरण नीचे दिए जा रहे हैं, जैसे –बुद्धि, मति, समझ.

ये शब्द मस्तिष्क की शक्ति से सम्बन्धित हैं. इनमें स्तरमात्र का भेद है. ‘बुद्धि’ का स्थान सबसे ऊँचा, ‘मति’ का बुद्धि से नीचा और ‘समझ’ का मति से नीचा है. क्या आपकी मति मारी गई थी कि आपने बिना ताला लगाए हुए साइकिल छोङ दी.

मेरी समझ में तुम्हें यहाँ से चला जाना चाहिए. (इसी  परिवार का एक शब्द ‘सूझ भी है. जो अंग्रेजी शब्द का पर्यायवाची है. सूझ का सम्बन्ध दिव्य मानसिक शक्ति से है, जो कार्य-कारण-सम्बन्ध से  परे है,जैसे-भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम में अहिंसा के अस्त्र का प्रयोग महात्मा गांधी की सूझ थी).

दया ,कृपा-किसी को दुःखी देखकर हृदय का पिघल उठना दया है. अपने से छोटे के प्रति सहायता करने का भाव कृपा है, जैसे –भिखारी को दो पैसे दे दिए, यदि आप मुझे कोई काम दिलवा सके तो आपकी बङी कृपा हो.

भ्रम , प्रमाद-सावधान न रहने के कारण जो भूल हो जाए वह भ्रम है . मूर्खता से अथवा जानबूझकर लापरवाही से जो भूल हो जाए , वह प्रमाद है, जैसे- गाङी तो 9 बजे ही चली गई, मुझे भ्रम था कि वह साढे सात बजे जाती है. प्रमादवश चलती रेल से उतरने के कारण तुम्हारी टाँग टूट गई.

भ्रम , सन्देह-किसी बात को गलत समझ लेना भ्रम है और बात के बारे में निश्चय न कर सकना सन्देह है. भ्रम में किसी बात का गलत निश्चय का अभाव रहता है. जैसे-आज रात को मुझे रस्सी में साँप का भ्रम हो गया है.  रात के समय रस्सी देखकर मुझे सन्देह हुआ कि यह साँप है.

ईर्ष्या, देष-दूसरे की उन्नति देखकर अकारण ही उससे बुरा मानना ईर्ष्या है. दूसरे से किसी कारणवश बुरा मानना देष है, जैसे –गोपाल को धनी देखकर राम उससे ईर्ष्या करता है. मास्टर साहब से शिकायत करने के कारण मुरारी मुझसे देष करता है (ईर्ष्या का बढा हुआ रूप डाह है).

मूर्ख,अज्ञानी , अनभिज्ञ- जिसमें किसी बात को समझने की शक्ति न हो वह मूर्ख है. जिसने किसी बात को समझा न हो वह अज्ञानी है. जिसे किसी बात को समझने का अवसर ही न मिला हो वह अनभिज्ञ हो, जैसे-वह ऐसा मूर्ख है कि जिस डाल पर बैठा है उसी को  काट रहा है. वह इतना अज्ञानी है कि आपसे अधिक व्यय करता है. कल शहर में डाका पङ गया. मैं इस बात से अनभिज्ञ हूँ.

लङका, पुत्र-लङके से तात्पर्य किसी व्यक्ति के पुत्र से है और पुत्र से तात्पर्य अपने लङके से है, जैसे-मोहन मेरा पुत्र है. मोहन मेरा लङका है. यह प्रयोग ठीक नहीं है.

स्त्री,पत्नी-स्त्री शब्द स्त्री-जाति का घोतक है, परन्तु ‘पत्नी’ शब्द केवल अपनी पत्नी का धोतक है, जैसे-मेरी पत्नी आजकल अस्वस्थ है( मेरी स्त्री आजकल अस्वस्थ है. यह प्रयोग ठीक नहीं है).

श्रद्धा, भक्ति-बङो के प्रति विशेष गुण के कारण उत्पन्न भाव का नाम श्रद्धा है. देवता अथवा गुरुजनों के प्रति आदर तथा प्रेम के भाव का नाम भक्ति है, जैसे-मुझे गांधीजी के प्रति श्रद्धा है. तुलसीदास भागवान् राम की भक्ति में लीन रहते थे.

प्रेम, प्रणय,स्नेह, वात्सल्य-प्रेम सामान्य शब्द है जो सभी के लिए प्रयुक्त हो सकता है. दाम्पत्य प्रेम को प्रणय कहते हैं. छोटों के प्रति प्रेम का नाम स्नेह है. पुत्र, शिष्यादि के प्रति प्रेम वात्सल्य है, जैसे सूरसागर में गोपीकृष्ण का प्रणय वर्णित है. बालकों पर स्नेह करना मनुष्यता का चिन्ह है. अपने पुत्र को पिटते देखकर माता का वात्सल्य उमङ पङा और उसने पीटने वाले के ईंट मार दी.

संकोच, लज्जा, ग्लानि-लज्जा का हल्का रूप संकोच है. इसमें किसी कार्य के करने के पूर्व हिचकिचाहट अथवा झिझक होती है. लज्जा में कोई बुरा काम हो जाने  के कारण दूसरे को मुहँ दिखाने की अनिच्छा होती है. अकेले में अपनी किसी बात का चित्त में खटकना ग्लानि है, जैसे-मुझे मित्र से अपने रुपए माँगने में संकोच है, चित्रकूट में राम से मिलने में कैकेयी को बहुत लज्जा हुई.भरत को यह ग्लानि थी कि मेरे कारण राम को वन जाना पङा.

दुःख, कष्ट,पीङा, वेदना, व्यथा, यातना-दुःख सामान्य शब्द है. इसका सम्बन्ध मन और शरीर दोनों से है. कष्ट का सम्बन्ध भी मन और शरीर दोनों से है, परन्तु कष्ट दुःख की अपेक्षा अधिक तीव्र भाव प्रकट करता है. पीङा का सम्बन्ध केवल शरीर से है. यह कष्ट की अपेक्षा बलवती है. व्यथा का नाम यातना है,जैसे मुझे दुःख है कि तुम परीक्षा में उत्तीर्ण न हो सके . यदि आपको कष्ट न हो तो आप मेरे साथ बाजार तक चले चलिए. आज मेरे सिर में पीङा हो रही है. वन्ध्या प्रसव वेदना क्या जाने . रुई के सट्टे में भारी घाटा होने से घूरेमल को व्यथा है. यम-यातना से बचने के लिए हमें सत्कार्य करने चाहिए.

खेद, शोक, क्षोभ, विषाद, सन्ताप-खेद सामान्य शब्द है और पछतावे अथवा निराशा का भाव प्रकट करता है. स्वजनों के अनिष्ट से शोक होता है. क्षोभ में खेद के साथ क्रोध का मिश्रण रहता है. विषाद शोक का बढा हुआ रूप है.  मानसिक दाह को सन्ताप कहते हैं. इन सभी शब्दों का सम्बन्ध मन से है, जैसे –मुझे खेद है कि इस समय मैं आपकी सहायता नहीं कर सकता . डच के घायल हो जाने का मोहन को शोक है. हिन्दू कोड बिल पर अधिकांश भारतवासियों को क्षोभ है. कहीं भी नौकरी न मिलने के कारण उसे  विषाद है. मेघनाद के वध पर सुलोचना को सन्ताप हुआ था.

सुख,  प्रसन्नता, हर्ष, आनन्द , आह्राद, उल्लास-प्रसन्नता शब्द साधारण भाव प्रकट करता है और इसका सम्बन्ध मन से है. हर्ष प्रसन्नता की अपेक्षा अधिक तीव्र है. आनन्द स्थायी भाव प्रकट करता है, यह इन्द्रियों से पर सुख का घोतक है, इसमें गम्भीरता रहती है. हर्ष का बढा हुआ रूप आह्रन्द है और आह्रन्द का तीव्र रूप उल्लास है. सुख का सम्बन्ध मन और शरीर दोनों से है, शेष का सम्बन्ध केवल मन  से है, जैसे –संसार के सुखों में फँसकर मनुष्य परमात्मा को भूल जाता है. मुझे प्रसन्नता है कि आप आजकल स्वस्थ हैं. मोहन को अपनी सफलता  पर हर्ष है. राम को देखकर शबरी आनन्द में मग्न हो गई. आज पुरुष जन्म के कारण गिरीश को आह्रन्द है. बिछङे हुए पुत्र को पाकर माता को उल्लास हुआ.

मन,चित्त, हृदय, अन्तःकरण-जिनके द्वारा इन्द्रियों के विषयों का ज्ञान होता है वह मग्न है.स्मृति ज्ञान के उत्पादक का नाम चित्त है.भावों के अनुभव करने को हृद्य कहते हैं. भले-बुरे का ज्ञान करने वाला ‘अन्तःकरण’ है जैसे-मेरे मनन में सिनेमा देखने की इच्छा  है. चित्त की चंचलता में पाठ याद नहीं होता. नायक को देखकर नायिका के हृदय में प्रेम उमङ आया. झूठ बोलने के लिए मेरा अन्तःकरण गवाही नहीं देता.

स्मरण, ध्यान-स्मरण का सम्बन्ध बुद्धि से है और ध्यान का सम्बन्ध मन से है, जैसे-मुझे स्मरण नहीं कि तुमने कल क्या कहा था ? मेरी बात ध्यानपूर्वक सुनो स्मरण करने वाली शक्ति का नाम स्मृति है.

परिश्रम, श्रम-परिश्रम सामान्य शब्द है, जो सब प्रकार के कार्य के लिए प्रयुक्त होता है.श्रम शब्द का क्षेत्र अपेक्षाकृत सीमित  है और वह हाथ पैर की मेहनत –मजदूरी के लिए आता है. थकावट का……… ,जैसे- हम बहुत परिश्रम से यह पुस्तक  लिख रहे हैं. श्रम –जीवियों को समाज में उचित स्थान मिलना चाहिए. खेल से श्रमित होकर बच्चा सो गया है.

आयास, प्रयत्न, यत्न, चेष्टा, प्रयास, उधोग-आयास परिश्रम का भाव प्रकट करना है. प्रयत्न (यत्न)  में प्रयास की  अपेक्षा हल्का भाव है.चेष्टा प्रयत्न की अपेक्षा बलवती होती है. प्रयास की चेष्टा से बढा हुआ भाव रहता है. उधोग  में प्रयास की अपेक्षा अधिक तीव्रता है. जैसे-बिना अपने आयास के कोई कार्य पूरा नहीं होता. तुमने बिलकुल  प्रयत्न नहीं किया. अन्यथा तुम्हें वह  नौकरी अवश्य मिल जाती. प्रयास करना अपना काम है, सफलता भगवान के हाथ में है. उसने चुनाव जीतने की अनेक चेष्टाएँ कीं, निरन्तर उधोग करने वाला व्यक्ति उन्नति के शिखर पहुँच जाता है.

प्रदान, अर्पण-प्रदान में बङो के द्वारा छोटों को देने का भाव रहता है और अर्पण में छोटों की ओर से बङों को  देने का भाव रहता है, जैसे –मैनें गुरु जी को दक्षिणा अर्पण की . राजा ने प्रसन्न होकर अपने मन्त्री को जागीर प्रदान की.

प्रार्थना, निवेदन-प्रार्थना साधारणतया किसी इच्छा की पूर्ति के लिए की जाती है, पर निवेदन में इच्छा का होना नितान्त आवश्यक नहीं है, जैसे –आपसे प्रार्थना है कि आप मेरी सहायता कीजिए. आपसे निवेदन है कि आप मेरे यहाँ भोजन कर लीजिए.

आकार, रूप- आकार का तात्पर्य बनावट या डीलडोल से है. रूप से तात्पर्य आकृति(शक्ल)से है, जैसे-ऊँट की गर्दन का आकार लम्बा होता है. गुलाब के फूल का रूप आकर्षक होता है.

हेतु, कारण- हेतु में साधारणतया किसी कार्य के करने का उद्देश्य या  अभिप्राय होता है. कारण में इसका होना आवश्यक नहीं है, जैसे-गंगा-स्नान हेतु प्रयाग पहुँचा. अपनी ही भूल के कारण मुझे यह हानि हुई है.

जाँच,परीक्षा-जाँच में निरीक्षण का भाव रहता है, परीक्षा में नही. अतः जहाँ निरीक्षण के भाव को प्रकट करना हो, वहाँ जाँच शब्द का प्रयोग करना चाहिए, जैसे-कोतवाल साहब आज मौके पर  चोरी की जाँच करने आए हैं, कल से हाईस्कूल की परीक्षा आरम्भ होगी.

विश्व, संसार-विश्व का मुख्य अर्थ ब्रहम्राण (समस्त भवनों का समूह) है. संसार से तात्पर्य हमारी दुनिया  से ही है, जैसे- भगवान  विश्व का भरण-पोषण करता है. आजकल संसार में अन्याय का बोलबाला है. आयु, अवस्था- जन्म से मृत्यु का सारा समय आयु है. अवस्था से किसी विशेष काल का बोध होता है, जैसे-संयमी व्यक्ति की आयु दीर्घ होती है. इस समय मेरी अवस्था तीस वर्ष की है.

उधार, मँगनी-उधार शब्द केवल रुपए-पैसे के लिए प्रयुक्त होती है, जैसे कल उसने मुझसे पच्चीस रुपए उधार लिए. यह मँगनी की पुस्तक है.

अन्तिम, पिछला-अन्तिम में शेष न रहने का भाव है, परन्तु पिछले शब्द में इस प्रकार का कोई भाव नहीं है. जैसे- इस मामले में मेरी अन्तिम राय है कि समझौता कर लिया जाए. मालूम पङता है कि आप  पिछली बातें भूल गए.

निश्चय, निश्चित-निश्चय संज्ञा है और निश्चित विशेषण , जैसे – मेरा यह दृढ निश्चय है कि में पुलिस विभाग में नौकरी नहीं करूँगा. अभी निश्चित रूप से नहीं कहा जा सकता है कि आगामी चुनाव में कौन जीतेगाᣛ ?

पीछे, उपरान्त-पीछे में क्रम  का भाव रहता है और उपरान्त में समय का, जैस-लक्ष्मणजी राम और सीता के पीछे चलते थे. दशहरे की छुट्टी के उपरान्त आज हमारा कार्यालय खुला है.

बङा, बहुत बङा- बङा शब्द विशेषण है. बहुत (प्रयोग के अनुसार) विशेषण और क्रिया विशेषण दोनों है. अतः क्रिया विशेषण रूप में बङा शब्द का प्रयोग नहीं करना चाहिए. विशेषण रूप में बहुत शब्द का प्रयोग परिणाम अथवा संख्या का बोध कराने के लिए होना चाहिए. जैसे-उसने बहुत अच्छा काम किया,

वह काम बहुत चला है(क्रिया विशेषण). मुझे बहुत भूख लगी है.

वह बङा आदमी है(विशेषण)

बहुत और बङा शब्दों का इसी क्रम में कभी-कभी एक साथ प्रयोग होता है. तब बहुत क्रिया विशेषण और बङा विशेषण रूप में आता है, जैसे-बहुत बङा आदमी है.)

संवेदना, सहानुभूति- संवेदना में किसी के दुःख में समान रूप से साथ देने(तदानुभव) का भाव रहता है. सहानुभूति में किसी के दुःख से प्रभावित होने का भाव रहता है. सहानुभूति अपेक्षाकृत हल्का भाव लिए हुए है, जैसे-बापू की मृत्यु पर मैंने रोते-रोते श्री देवदास गांधी को संवेदना का पत्र लिखा था.

पङोसी के दुःख में सहानुभूति प्रकट की ही जाती है.

प्रसिद्धि, ख्याति-प्रसिद्धि सामान्य भाव प्रकट करता है और ख्याति विशेषण/ प्रसिद्धि की  अपेक्षा ख्याति बलवती होती है, जैसे-हरी के खेल की प्रसिद्धि शहर भर में है.

ताजमहल की ख्याति संसार भर में है.

अमूल्य, बहुमूल्य-जो वस्तु मूल्य देने से भी न मिल सके, वह अमूल्य है. जिस वस्तु का मूल्य बहुत हो वह बहुमूल्य है, जैसे –सदाचार अमूल्य वस्तु है. स्वर्ण बहुमूल्य धातु है.

अशुद्धि, भूल, (चूक) , त्रुटि, दोष- अशुद्धि लिखने और बोलने में (भाषा सम्बन्धी) होती है. भूल(चूक )सब प्रकार कू गलती  को कहते हैं. त्रुटि में भूल की अपेक्षा अधिक जोरदार गहरा भाव रहता है. दोष त्रुटि की अपेक्षा अधिक जोरदार शब्द है इसमें स्थायित्व का भाव रहता है, जैसे –आजकल की रचनाओं में अनेक अशुद्धियाँ पाई जाती हैं. ड्राइवर की भूल से मोटर गड्ढे में जा गिरी. मुझसे आज यह त्रुटि हो गई कि मैंने इतिहास के प्रश्न-पत्र में चार के स्थान पर पाँच प्रश्न हल कर दिए . मुझमें यह दोष है कि मैं अपनी ही कहता हूँ, दूसरों की नहीं सुनता.

वधू,  गृहिणी-नव विवाहिता स्त्री (दुलहिन) को वधू कहते हैं. घर की स्वामिनी को गृहिणी कहते हैं, जैसे-विवाह के समय गुरुजन वर और वधू को आशीर्वाद देते हैं.

कन्या की शिक्षा इस प्रकार की होनी चाहिए कि वह सफल गृहिणी बन सके.

मनुष्य, पुरुष-मनुष्य से मानव जाति (पुरुष तथा स्त्री) दोनों का बोध होता है, जैसे-मनुष्य को विधा पढनी चाहिए. स्त्रियों के स्नान स्थान पर पुरुषों को नहीं जाना चाहिए.

परामर्श, मंत्रणा- परामर्श सामान्य भाव प्रकट करता है और मंत्रणा में दुराव-छिपाव का भाव रहता है, जैसे-गांधीजी के परामर्श के बिना कांग्रेस का कोई कार्य नहीं होता था.

रावण ने सीता-हरण के लिए मारीच के साथ मंत्रण की थी.

संतोष, तृप्ति, शांति- जो कुछ अपने पास हो उसी को पर्याप्त समझ लेना सन्तोष है. आकांक्षा की निवृत्ति तृप्ति है. शान्ति में स्थायित्व का भाव  है. स्थायी तृप्ति को शान्ति कहते हैं.  जैसे-दाल-रोटी में ही सन्तोष है.

पुत्र उत्पन्न हो जाने से  उसकी इच्छा की तृप्ति हो  गई. भगवान के भजन से ही मन को शान्ति मिलती है.

सामान्य,साधारण-सामान्य से किसी जाति या वर्ग की समस्त वस्तुओं में पाए जाने वाले समान गुण का बोध होता है. साधारण में इस प्रकार का कोई भावना नहीं, जैसे- प्रतिहिंसा की भावना प्राणी मात्र में सामान्य रूप से पाई जाती है.

देर से आना आपके लिए साधारण बात है.

शंका, आशंका-शंका में वर्तमान अंमगल की भावना रहती है और आशंका भविष्य के अमंगल की भावना से उत्पन्न होती है. जैसे-अंधेरे में जाते समय मुझे किसी प्रकार की शंका नहीं होती, पाकिस्तान की बेहूदी बातों से निकट भविष्य में युद्ध की आशंका है.

भय, त्रास-भय और त्रास में यह अन्तर है कि त्रास में व्याकुलता का भी भाव रहता है जो भय में आवश्यक नहीं है. त्रास , भय की अपेक्षा अधिक तीव्र है, जैसे-बच्चों के सामने भय की बातें नहीं करनी  चाहिए. रावण के त्रास से ऋषि–मुनि अपने आश्रमों को छोङकर कन्दराओं में जा छिपे थे.

विपरीत, विरुद्ध-विपरीत का अर्थ उल्टा और विरुद्ध में ‘विरोध’ का भाव है, जैसे-हानि और लाभ दोनों शब्द एक-दूसरे के विपरीत हैं. झूठ बोलना गांधीजी की प्रकृति के विरुद्ध था.

निन्दा, अपवाद, अपयश- सच्चे दोषारोपण को निन्दा और झूठे दोषरोपण को अपवाद कहते हैं. दोनों अल्पकालीन हैं, परन्तु अपयश स्थायी होता है, जैसे-गोपाल की बङी निन्दा हो रही है, क्योंकि उसने अपने अध्यापक को अपशब्द कह दिए. यह अपवाद मात्र था  कि सन् 1942 का विद्रोह गांधीजी ने कराया था.

भजन,अर्चना, पूजा-भजन केवल मानसिक होता है, अर्चना केवल बाह्रा क्रिया(धूप, दीपादि द्वारा सत्कार)होती है.पूजा मानसिक और बाह्रा दोनों प्रकार की हो सकती है, जैसे- वह कमरे में बैठा हुआ भगवान का भजन कर रहा है.

हनुमानजी की अर्चना सिन्दूर का चोला चढाकर की जाती है.

दयानन्द सरस्वती मूर्ति-पूजा के विरुद्ध थे.

उपासना, आराधना-देवता की प्रसन्नता के लिए जो क्रिया की जाती है उसे उपासना कहते हैं. देवता के निकट वर-याचना करना आराधना, है, जैसे-हिन्दू-समाज में विभिन्न देवी-देवताओं की उपासना प्रचलित है.

राम को प्राप्त करने के लिए सीता ने पार्वती की आराधना की थी.

अहंकार, अभिमान , गर्व-अपने को ऊँचा समझना अहंकार,दूसरों को अपने से छोटा समझना अभिमान और रूप, बल, धन आदि के कारण अपने से दूसरों को छोटा समझना गर्व होता है. अभिमान में कारण का होना आवश्यक नहीं है. परन्तु गर्व में कारण का होना आवश्यक है, जैसे विनयशील व्यक्ति में अहंकार नहीं होता.

अभिमान के कारण अपने साथियों के प्रति उसका व्यवहार बिगङ गया है.

रावण को अपने बल का बङा गर्व था.

अस्त्र-शस्त्र-यन्त्र द्वारा फेंककर चलाया जाने वाला हथियार अस्त्र और हाथ में पकङकर चलाया जाने वाला हथियार शस्त्र कहलाता है, जैसे- सिहं को मारने के  लिए उसने दूर से ही अपना अस्त्र चलाया. शस्त्र के  द्वारा सिंह को मारना वीरों का ही काम है.

आधि, व्याधि-मानसिक दुःख को आधि और शारीरिक कष्ट को व्याधि कहते हैं. जैसे- पुत्र मृत्यु की आधि के कारण वह पागल हो गया है. रोग राम व्याधि के कारण है.

आचार, व्यवहार-आचार व्यापक शब्द है और व्यवहार सीमित. किसी व्यक्ति विशेष के प्रति होने वाले बर्ताव को व्यवहार कहते हैं. जैसे-आचार रहित जीवन अभिशाप है. जैसे-आजकल गुरुजनों के प्रति लङकों का व्यवहार अच्छा नहीं पाया जाता है.

तीर, तट-जलाशय के जल को स्पर्श करने वाली जमीन तीर और जलाशय के पास ही जमीन तट कहलाती है, जैसे-स्नान करते समय मैंने अपने वस्त्र यमुना के तीर पर रख दिए . कृष्ण यमुना के तट पर गायें चराया करते थे.

ब्राह्माण , दिज-ब्राह्माण और दिज में यह अन्तर है  कि दिज ब्राह्माण के अतिरिक्त क्षत्रिय और वैश्य के लिए भी प्रयुक्त होता है. ‘ब्राहमाण’ एक वर्ग विशेष के लिए  प्रयुक्त होता है.

भागना, दौङना-भागना प्रायः किसी प्रकार की शंका अथवा डर के कारण होता है, परन्तु दौङने में यह बात नहीं होती है. इसके अतिरिक्त भागने  का अर्थ ‘जी चुराना’, ‘जान बचाना’ भी होता है, जो दौङना का नहीं होता है. जैसे- चीता को देखते ही वह भाग गया.

वह काम करने से भागता है.

हॉकी के खेल में बहुत दौङना पङता है.

अन्य भारतीय भाषा –भाषायों के प्रभाव के कारण भी वाक्य-विन्यास में अशुद्धियाँ आ जाती हैं.

वस्तुनिष्ठ प्रश्न

निर्देश- नीचे  कुछ वाक्य दिए हुए हैं. प्रत्येक में एक रिक्ति है. उसकी पूर्ति हेतु चार विकल्प दिए गए हैं. सही विकल्प का चयन कीजिए.

  1. ताजमहल के….. सौंदर्य से हर कला प्रेमी प्रभावित होता है
  • अनुपम
  • अनोखे
  • अतुलनीय
  • अदितीय
  1. प्रधानाचार्य के पद हेतु पाँच वर्ष का शिक्षण…..आवश्यक है .
  • अध्ययन
  • अध्यवसाय
  • अनुभव
  • शिक्षण
  1. शिवाजी की…… मुगल सेना पर छाया हुआ था.
  • भय
  • डर
  • नाम
  • आतंक
  1. विश्वामित्र ने श्रीराम को धनुष भंग करने की…… दी.
  • आज्ञा
  • अनुज्ञा
  • अनुमति
  • स्वीकृति
  1. यह मेरा…. है कि आज वर्षा अवश्य होगी.
  • कथन
  • आकलन
  • अनुभव
  • अनुमान
  1. श्रीराम ने रावण के ………को चूर कर दिया.
  • अहंकार
  • गर्व
  • दर्प
  • अभिमान
  1. इस प्रस्ताव को अग्रसारित करने के पूर्व इसका आवश्यक है.
  • समर्थन
  • अनुमोदन
  • प्रतिषेध
  • प्रतिवेदन
  1. अधिक…….न करें . प्रधानाचार्य जी अप्रसन्न हो जाएंगे.
  • आग्रह
  • याचना
  • अनुरोध
  • अनुनय-विनय
  1. जो …….. करें, उनकी रिपोर्ट पुलिस से करना हमारा धर्म है.
  • पाप
  • अन्याय
  • अधर्म
  • अपराध
  1. आजकल सस्ती लोकप्रियता प्राप्त करने के लिए प्रत्येक व्यक्ति उत्सुक रहता है. फलतः राष्ट्रीय चरित्र का……हो गया है.
  • पतन
  • ह्रास
  • विकास
  • अवमूल्यन

उत्तरमाला

1.  (A)      2. (C)     3. (D)    4. (A)    5. (D)     6. (C)     7. (B)     8. (A)    9. (D)    10. (D)  

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